श्रीलंका अपनी आजादी के बाद से सबसे खराब आर्थिक दौर से गुजर रहा है, तो हालात दिन-प्रतिदिन दयनीय होते जा रहे है। श्रीलंका के मानवाधिकार आयोग (एचआरसीएसएल) प्रमुख ने देश में आर्थिक संकट को लेकर राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के आवास के बाहर हिंसक विरोध प्रदर्शन करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए लोगों पर अधिकारियों को आतंकवाद का आरोप लगाने के खिलाफ चेतावनी दी है।
हिरासत में लिए गए लोगों पर आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पीटीए) नहीं लगाना चाहिए
एचआरसीएसएल की अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रोहिणी मरासिंघे ने जोर देकर कहा है कि गुरुवार को हिरासत में लिए गए लोगों पर आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पीटीए) नहीं लगाना चाहिए। इसका इस्तेमाल अतीत में तमिल टाइगर अलगाववादियों और अन्य हिंसक समूहों के खिलाफ किया गया था। श्रीलंकाई मीडिया ने शनिवार को न्यायमूर्ति मरासिंघे के हवाले से एचआरसीएसएल कर्मचारियों को बताया कि गिरफ्तार किए गए लोगों पर सार्वजनिक संपत्ति अधिनियम (पीपीए) 1982 के तहत आरोप लगाया जा सकता है।
पुलिस ने हिंसा के लिए चरमपंथियों को दोषी ठहराया
मिरिहाना (जहां राष्ट्रपति आवास है) से कुल 52 पुरुषों और एक महिला को हिरासत में लिया गया था। इनको उस समय हिरासत में लिया गया था, जब राष्ट्रपति आवास के बाहर जमा भीड़ ने दो बसों, एक पुलिस जीप, दो ट्रैफिक मोटरसाइकिल और दो तिपहिया वाहनों सहित कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया था।
इस दौरान 24 पुलिसकर्मी घायल भी हो गए थे।एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पुलिस ने हिंसा के लिए चरमपंथियों को दोषी ठहराया और कहा कि कई प्रदर्शनकारी लोहे की सलाखों, तेज धार वाले हथियारों से लैस थे। उनका उद्देश्य केवल अराजकता फैलाना था। गौरतलब है कि श्रीलंका 1948 में स्वतंत्रता के बाद से सबसे खराब आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है, जिससे ईंधन की गंभीर कमी और खाद्य कीमतों में बेतहासा वृद्धि हो रही है।