लक्जमबर्ग : फेसबुक को यूरोपीय संघ की शीर्ष अदालत में बुधवार को बड़ा कानूनी झटका लगा। शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी कि यूरोप के देशों की राष्ट्रीय अदालतें आनलाइन प्लेटफार्म कंपनी को नफरत फैलाने वाली सामग्री को दुनियाभर में उसके प्लेटफार्म से हटाने का आदेश दे सकती हैं।
एक बयान के मुताबिक यूरोपीय न्यायालय ने कहा है कि यूरोपीय संघ का कानून देशों की अदालतों को ‘दुनियाभर से किसी जानकारी को हटाने या उस तक पहुंच को रोकने’ का आदेश देने से नहीं रोकता है।
इस निर्णय को यूरोपीय संघ के नियामकों की जीत के तौर पर देखा जा रहा है। इससे अमेरिका की इन कंपनियों पर नियामकों को यूरोपीय मानकों के हिसाब से समाज को बांटने या घृणा फैलाने वाली सामग्री पर कार्रवाई करने में मदद मिलेगी।
पिछले सप्ताह हालांकि, यूरोपीय न्यायालय के ही एक फैसले को गूगल के लिये जीत के रूप में देखा जा रहा था। यूरोपीय संघ की शीर्ष अदालत ने ही व्यवस्था दी थी कि गूगल को यूरोपीय संघ के संबंधित कड़े नियम को वैश्विक स्तर पर लागू करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता।
फेसबुक का ताजा मामला मूल रूप से ऑस्ट्रिया की अदालत में आया था। इसे ग्रीन पार्टी की नेता एवा ग्लाविश्निग अदालत लेकर गयी थीं। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया था कि फेसबुक उन पोस्ट को हटाए जो उनका अपमान करती हैं और कंपनी के उपयोगकताओं द्वारा दुनियाभर में देखी जा रही हैं।
फेसबुक पर एक संदिग्ध खाते से की गयी पोस्ट में ग्लाविश्निग को ‘भ्रष्ट’ बताया गया था। बाद में शिकायत के बावजूद फेसबुक ने इसे अपनी साइट से हटाने से मना कर दिया था।
ऑस्ट्रिया की एक उच्च अदालत ने इस मामले में विचार जानने और निर्णय देने के लिए इसे यूरोपीय संघ की शीर्ष अदालत भेज दिया था।
शीर्ष अदालत में भेजे गए मामलों के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती और पूरे यूरोप में इसके फैसलों का संदर्भ दिया जाता है।
इस फैसले से फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कंपनियों के ऊपर उनके मंच पर सामग्री की निगरानी करने और घृणा, नफरत और फर्जी खातों को हटाने का दबाव बढ़ रहा है।
फेसबुक ने यूरोपीय न्यायालय के निर्णय की आलोचना करते हुए एक बयान में कहा, ‘‘यह (फैसला) किसी एक देश के अपने अभिव्यक्ति कानूनों को दूसरे देश पर लागू नहीं करने के लंबे समय से चले आ रहे सिद्धांत को कमजोर करता है।’’
फेसबुक ने घृणा फैलाने वाली भाषा या उसके समतुल्य सामग्री को हटाने के लिए निगरानी करने की बाध्यता के आदेश की निंदा की।
फेसबुक ने कहा कि इसे सही तरीके से लागू करने के लिए राष्ट्रीय अदालतों को ‘समतुल्य सामग्री’ की स्पष्ट परिभाषा तय करनी होगी।
ग्लाविश्निग ने इस फैसले को ‘बड़ी वेब कंपनियों के खिलाफ मानवाधिकारों की एक ऐतिहासिक सफलता’ करार दिया है।