Lifestyle
By Khushi Srivastava
Sept 29, 2024
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
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हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे, कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर, जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
तेरी महफ़िल से जो निकला तो ये मंज़र देखा, मुझे लोगों ने बुलाया मुझे छू कर देखा
मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग, गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए
इक मुलाक़ात का जादू कि उतरता ही नहीं, तिरी ख़ुशबू मिरी चादर से नहीं जाती है
शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए, ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता, यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी