Bhawana Rawat
ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
तिरी याद आंखे दुखाने लगी
सोए तो दिल में एक जहां जागने लगा
जागे तो अपनी आंख में जाले थे ख़्वाब के
तस्वीर में जो क़ैद था वो शख़्स रात को
ख़ुद ही फ़्रेम तोड़ के पहलू में आ गया
लम्हे के टूटने की सदा सुन रहा था मैं
झपकी जो आंख सर पे नया आसमान था
दरवाज़ा खटखटा के सितारे चले गए
ख़्वाबों की शाल ओढ़ के मैं ऊंघता रहा
फिर बालों में रात हुई
फिर हाथों में चांद खिला
ऐसे डरे हुए हैं ज़माने की चाल से
घर में भी पांव रखते हैं हम तो संभाल कर
क्यूं चलते चलते रुक गए वीरान रास्तो
तन्हा हूं आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो