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दुनिया का तलबगार नहीं हूँ…” पढ़िए अकबर इलाहाबादी के चुनिंदा शेर

By Khushi Srivastava

Oct 14, 2024

इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद, अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता

Source: Pinterest

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ, बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ 

अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से, लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से

कोट और पतलून जब पहना तो मिस्टर बन गया, जब कोई तक़रीर की जलसे में लीडर बन गया

इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है, पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है

साँस की तरकीब पर मिट्टी को प्यार आ ही गया, ख़ुद हुई क़ैद उस को सीने से लगाने के लिए

हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के, हाँ ऐ निगाह-ए-शौक़ ज़रा देख-भाल के

मरना क़ुबूल है मगर उल्फ़त नहीं क़ुबूल, दिल तो न दूँगा आप को मैं जान लीजिए