By Ritika
Sep 18, 2024
'वन नेशन-वन इलेक्शन' पर काफी समय से चर्चा चल रही है। अब इस प्रस्ताव को मोदी कैबिनेट से मंजूरी मिल गई है। बता दें कि इस पर कोविंद कमेटी ने रिपोर्ट दी है
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कहा जा रहा है कि सरकार आगामी शीतकालीन सत्र में 'वन नेशन-वन इलेक्शन' को पेश कर सकती है। ऐसे में आइए जानते हैं कि इसके तहत देश की वोटिंग व्यवस्था में क्या बदलाव होगा
भारत में वन नेशन-वन इलेक्शन आने के बाद संसद के निचले सदन यानी लोकसभा चुनाव के साथ ही सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव होंगे
इसके साथ ही स्थानीय निकायों यानी नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत और ग्राम पंचायतों के चुनाव भी साथ ही होंगे। ऐसे में ये चुनाव एक ही दिन या फिर एक निश्चित समय सीमा में कराए जा सकते हैं
बता दें कि कई सालों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव के साथ ही राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव कराने पर जोर देते रहे हैं
वहीं, वन नेशन-वन इलेक्शन देश में पहले भी कई बार हो चुका है। आजादी के बाद साल 1950 में देश गणतंत्र हुआ तो साल 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ ही चुनाव कराए गए
उस समय लोकसभा के साथ ही राज्य विधानसभाओं के भी चुनाव होते थे। इसके बाद कुछ राज्यों का पुनर्गठन हुआ और कुछ नए राज्य बनाए गए। इसके कारण अलग-अलग समय पर चुनाव होने लगे
वन नेशन-वन इलेक्शन का फायदा ये है कि चुनाव का खर्च घट जाएगा। इसके अलावा बार-बार चुनाव होने से प्रशासन और सुरक्षा बलों पर भी बोझ पड़ता है। उनपर भी ज्यादा बोझ नहीं पड़ेगा
एक बार में चुनाव निपट जाने पर केंद्र और राज्य सरकारें कामकाज पर फोकस कर सकेंगी। बार-बार वह इलेक्शन मोड में नहीं जाएंगी और विकास के कामों पर ध्यान दे सकेंगी
वन नेशन-वन इलेक्शन व्यवस्था लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती संविधान और कानून में बदलाव है। एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा
एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव होंगे तो अधिक मशीनों की जरूरत पड़ेगी। वहीं, एक साथ चुनाव के लिए ज्यादा प्रशासनिक अफसरों और सुरक्षाबलों की जरूरत भी होगी