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By Pratibha
11 April 2024
गीता का सबसे मुख्य संदेश है कि आत्मा अमर है और शरीर नश्वर। हमारी सच्ची पहचान हमारी भौतिक देह और व्यक्तित्व नहीं है, बल्कि हमारी आत्मा है
हमें अपने कर्तव्यों को फल की इच्छा के बिना, पूर्ण समर्पण के साथ करना चाहिए। फल और बाहरी परिणामों पर हमारा नियंत्रण नहीं होता। जो हमारे वश में है, वह है कर्म करना
हमें अपने कर्तव्यों को फल की इच्छा के बिना, पूर्ण समर्पण के साथ करना चाहिए। फल और बाहरी परिणामों पर हमारा नियंत्रण नहीं होता। जो हमारे वश में है, वह है कर्म करना
हमें अपने स्वभाव के अनुसार अपना धर्म (कर्तव्य) निभाना चाहिए। स्वधर्म का पालन और दूसरों के धर्म का आदर करना, यही गीता का संदेश है। अर्जुन को एक योद्धा के रूप में अपना धर्म निभाना था
सुख-दुख, लाभ-हानि, और जीत-हार में समान भाव रखना चाहिए। गीता में स्थितप्रज्ञ व्यक्ति यह जानता है कि ये संसार के द्वंद्व अस्थायी हैं
अशांत मन ही दुख का कारण है गीता मन पर विजय प्राप्त करने के लिए ध्यान और योग के अभ्यास पर जोर देती है एक स्थिर मन ही सही निर्णय ले सकता है
भौतिक सुखों और सांसारिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति दुख का कारण है। हमें भोगों से अनासक्त रहकर अपना जीवन जीना चाहिए
चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, हमें हमेशा धर्म के अनुसार चलना चाहिए। अर्जुन युद्ध से भागना चाहते थे, लेकिन कृष्ण ने उन्हें उनके परम कर्तव्य की याद दिलाई