क़िस्मत तो देख टूटी है जा कर कहां कमंद
कुछ दूर अपने हाथ से जब बाम रह गया
दुनिया में हम रहे तो कई दिन प इस तरह
दुश्मन के घर में जैसे कोई मेहमाँ रहे
कोई दिन आगे भी ज़ाहिद अजब ज़माना था
हर इक मोहल्ले की मस्जिद शराब-ख़ाना था
दिल पा के उस की ज़ुल्फ़ में आराम रह गया
दरवेश जिस जगह कि हुई शाम रह गया
टुकड़े कई इक दिल के मैं आपस में सिए हैं
फिर सुब्ह तलक रोने के अस्बाब किए हैं
ग़ैर से मिलना तुम्हारा सुन के गो हम चुप रहे
पर सुना होगा कि तुम को इक जहाँ ने क्या कहा
मैं किन आंखों से ये देखूं कि साया साथ हो तेरे
मुझे चलने दे आगे या टुक उस को पेशतर ले जा
कब मैं कहता हूं कि तेरा मैं गुनहगार न था
लेकिन इतनी तो उक़ूबत का सज़ा-वार न था