आग का क्या है पल दो पल में लगती है
बुझते बुझते एक ज़माना लगता है
मैकशों आगे बढ़ो बादाकशो आगे बढ़ो
अपना हक़ मांगा नहीं जाए है छीना जाए है
गुल से लिपटी हुई तितली को गिराकर देखो
आंधियों तुमने दरख़्तों को गिराया होगा
क़त्ल तो नहीं बदला क़त्ल की अदा बदली
तीर की जगह क़ातिल साज़ उठाए बैठा है
इंतज़ार के शब में चिलमने सरकती हैं
चौंकते हैं दरवाजे, सीढ़ियां धड़कती हैं
कुछ मोहब्बत को न था चैन से रखना मंज़ूर
और कुछ उन की इनायात ने जीने न दिया
इस तरह मोहब्बत में दिल पे हुक्मरानी है
दिल नहीं मिरा गोया उन की राजधानी है
घटा छाई हुई है, तू ख़फा है, रिंद प्यासे हैं
ये क़त्लेआम, क़त्लेआम, क़त्लेआम है साक़ी
दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिले
हम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले
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