गोल्ड फिश सभी मछलियों में बहुतज्यादा फेमस होती हैं। अगर अपने घर में एक्वेरियम है या फिर आपने कभी एक्वेरियम देखा होगा तो उसमे इस मछली का होना लाज़मी होता हैं। गोल्ड फिश का रंग सुनहरा होता है और आकार में ये छोटी सी मछली काफी सुन्दर लगती हैं। और यहीं कारण है कि लोगों को ये काफी पसंद आती हैं। लेकिन दुःख की बात ये है कि गोल्ड फिश लम्बे समय रक जीवित नहीं रहती है। इनकी मृत्यु काफी जल्दी हो जाती हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार ये गोल्ड फिश 10-15 सालों तक ही सिर्फ ज़िंदा होती हैं। लेकिन क्या आपको मालूम है धरती पर एक गोल्ड फिश ऐसी भी है जिसे कि सबसे बूढी ओल्ड फिश कहा गया हैं।
गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड के द्वारा सालों पहले एक गोल्ड फिश को दुनिया की सबसे बूढ़ी गोल्ड फिश घोषित किया गया था। हैरानी की बात तो ये है कि आज तक इसका रिकॉर्ड कोई दूसरी गोल्ड फिश नहीं तोड़ पाई हैं। बता दें कि टिश नाम की एक नर गोल्ड फिश 43 साल की उम्र में मर गई थी जिसकी वजह से उसे ये सबसे बूढी गोल्ड फिश होने का दर्जा मिला था.
आखिर किसकी थी ये मछली ?
आपको जानकारी दें कि ब्रिटेन के नॉर्थ यॉर्कशायर में एक 7 साल का बच्चा रहता था जिसका नाम पीटर हैंड था. वह गोल्ड फिश पीटर की थी और पीटर ने उस गोल्ड फिश को एक मेले में इनाम के तौर पर जीता था। बहुत लम्बे समय तक पीटर ने इस मछली का ध्यान रखा था। बहुत अचे से इसकी देखभाल भी की थी। लेकिन पीटर की शादी के बाद वो अपने परिवार के साथ दूसरी जगह रहने लगा और मछली का ध्यान उसकी माँ रखती थी जो की उसके पिता के घर थी। पीटर की माँ हिल्डा ने इस मछली का बड़े अचे से ख्याल रखा था।
आखिर कैसी थी ये गोल्ड फिश?
साल 1999 में डेली एक्सप्रेस नाम के एक अखबार को हिल्डा ने बताया था कि इस मछली की डाइट बहुत ही ज्यादा हैल्दी थी और साथ ही उसको शांत जगह पर रहना काफी पसंद था। हिल्डा का कहना है की टिश अकेली नहीं रहता थी टिश मछली जिस बाउल में रहती थी, उसी बाउल में एक और मछली भी रहती थी जिसका नाम टोश था और वो भी एक गोल्ड फिश थी।
कैसे हुई टिश की मौत
लेकिन टोश कुछ सालों तक ही रही और फिर उसकी मौत 19 साल की उम्र में साल 1976 में हो गई थी. साल 1988 में टिश, मौत के काफी करीब आ पहुंचा था। यहां तक कि वो अपने बाउल से बाहर निकलकर जमीन पर आ गिरा थी. उस समय हिल्डा भी अपने घर पर नहीं थी और जब वो लौटकर आईं तो उन्होंने मछली को बाहर पाया। उन्हें ये तक नहीं पता था कि आखिर वह मछली कितनी देर तक बाहर थी। लेकिन फिर दोबारा जैसे ही उन्होंने मछली को पानी में के अंदर डाला, उसकी सांसें वापिस से चलने लगी थीं. जैसे-जैसे मछली की उम्र बढ़ने लगी और वह बूढ़ी होती गई, वैसे वैसे उसकी चमड़ी, गोल्डेन से सिल्वर रंग की होने लगी और फिर 1 अगस्त 1999 को मछली की मौत हो गई थी.