पोप फ्रांसिस जो ईसाई धर्म के सबसे बड़े धर्मगुरु हैं उनका 88 साल की उम्र में निधन हो गया। उनके निधन के बाद अब उनके उत्तराधिकारी के चुनाव की चर्चा तेज हो गई है
लेकिन क्या आपको पता है कि उनके उम्मीदवार के नाम में किसी भी महिला का नाम शामिल नहीं है। आप सोच रहे होंगे कि आखिर पोप बनने के लिए किसी महिला का नाम क्यों नहीं दिया जाता। आइए जानते हैं इसके पीछे का कारण
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जानकारी के लिए आपको बता दें कि कोई भी महिला पोप नहीं बन सकती है। इसका कारण है कि कैथलिक चर्च के नियम। कैथलिक चर्च के नियम के अनुसार केवल बपतिस्मा प्राप्त पुरुष ही पोप बन सकते हैं। यह एक परंपरा है जिसे 1994 में पोप जॉन पॉल द्वितीय द्वारा मजबूत किया गया था
पोप बनने वाले पुरुष का अविवाहित होना, साथ ही उसे बिशप, कार्डिनल या प्रीस्ट होना जरूरी है। महिलाओं को कैथलिक चर्च के नियमों में पादरी बनने की अनुमति नहीं दी गई है और यही कारण है कि चर्च से जुड़ी कोई भी महिला पोप की उपाधि हासिल नहीं कर सकती
कैथलिक चर्च के नियम के अनुसार महिलाओं को पोप फ्रांसिस ने चर्च में वाचक के रूप में सेवा देने की अनुमति दी थी। सभी महिलाओं को उनकी योग्यतानुसार चर्च के पवित्र ग्रंथों को पढ़ने और यूचरिस्टिक मंत्रियों के रूप में सेवा देने की अनुमति प्राप्त है
बता दें कि कैथलिक चर्च का मानना है कि केवल पुरुषों को जीसस ने अपने कार्य के लिए चुना था। यही कारण है कि केवल पुरुषों को ही चर्च में पादरी के और पोप के रूप में चुना जाता है
पोप बनने की प्रकिया की शुरूआत चुनाव से की जाती है। इस चुनाव में 80 साल से कम उम्र के कार्डिनल्स पोप चुनने के लिए गुप्त मतदान करते हैं। पोप बनने के लिए दो-तिहाई बहुमत का होना जरूरी होता है
अगर पोप को चुनने में आपसी सहमति नहीं हो पाती तो यह चुनाव जारी रहता है। जब तक पोप चुनने का निर्णय नहीं होता, तब तक मतपत्रों को जलाया जाता है। जब चिमनी से सफेद धुआं निकलता है, तब माना जाता है कि नया पोप चुन लिया गया है। इसलिए जब तक चर्च के सिद्धांत में बदलाव नहीं होता, तब तक पोप का पद पुरुषों के लिए आरक्षित रहेगा
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