माघ महीने का पहला व्रत सकट चौथ 10 जनवरी 2023 को है, इसे बड़ी चतुर्थी भी कहा जाता है।हिन्दू धर्म में सकट चौथ के व्रत का अत्यंत महत्व है। यह व्रत संतान के लिए रखा जाता है। सकट चौथ व्रत में कथा के बिना पूजा का फल नहीं मिलता।
आइए जानते हैं सकट चौथ की व्रत कथा।
सकट चौथ व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में साहूकार और उसकी पत्नी रहते थे।
वे निःसंतान थे यही उनकी सबसे बड़ी चिंता थी। एक बार सकट चौथ के दिन उनकी पड़ोसन पूजा अर्चना कर रही थी। साहुकारनी ने पड़ोसन को पूजा करते देखा तो पूछने लगी कि आखिर तुम यह क्या कर रही हो? पड़ोसन ने कहा कि आज सकट चौथ है और मैं इसकी पूजा कर रही हूं। फिर साहुकारनी ने पूछा कि इस व्रत और पूजा से क्या लाभ होता है?
पड़ोसन ने कहा कि इस व्रत से धन, वैभव, सुहाग की दीर्घायु और संतान की प्राप्ति होती है। साहूकारनी ने कहा कि वह मां बनती है तो सकट चौथ व्रत करेगी और गणेश जी को सवा सेर तिलकुट चढ़ाएगी। गणेश जी की कृपा से वह गर्भवती हो गई।अब साहूकारनी की लालच और बढ़ गया।उसने कहा कि उसे बेटा हुआ तो ढाई सेर तिलकुट करेगी। साहूकारनी को एक सुयोग्य पुत्र की प्राप्ति हुई।फिर उसकी लालसा बढ़ गई अब वह बोली कि अगर उसके बेटे का विवाह हो जाता है, तो वह सवा पांच सेर तिलकुट करेगी।गजानन के वरदान से उसका विवाह भी हो सगया लेकिन वह तिलकुट चतुर्थी करना भूल गई।
साहूकारनी के बेटे का विवाह तय हो गया। लोभी साहूकारनी को सबक सिखाने के लिए गणपति जी ने अपनी माया से शादी वाले दिन उसके बेटे को गायब कर दूर कहीं जंगल में पहुंचा दिया। माता-पिता और सभी वर के गुम हो जाने पर चिंतित होने लगे।विवाह टल गया। एक दिन साहूकारनी की होने वाली बहू सखियों संग जंगल में दूर्वा लेने गई थी।उसे देखकर साहूकारनी के बेटे ने आवाज भी दी लेकिन वह सभी डर के वहां से चली गईं और इस घटना के बारे में अपनी मां को बताया।
गांववालों और साहूकारनी के समधियों ने वहां जाकर देखा तो उनका दामाद घने जंगल में एक पेड़ पर बैठा था। उसने अपनी सभी को अपनी मां की गलती बताई और कहा कि मां ने सकट चौथ व्रत करने का वचन दिया था लेकिन उसे पूरा नहीं किया जिसके कारण सकट देव यानी गणपति जी नाराज हैं।
साहूकरानी को जब ये बात पता चली तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने गणपति जी से क्षमा याचना कर सकट चौथ का व्रत और तिलकुट किया।गणेश जी न साहूकरानी को माफ कर दिया और उसका बेटा भी सही सलामत घर आ गया।कहते हैं कि सकट चौथ के व्रत के प्रभाव से संतान पर कभी कोई आंच नहीं आती। तभी से ये व्रत किया जाने लगा।