हम युगो-युगो से एक नाम सुनते हुए आ रहे हैं और वो हैं राम लेकिन जब भी हम राम का नाम लेते हैं तो एक और नाम याद आता हैं और वो हैं रावण। रावण को शुरू से ही बुराई का प्रतीक माना गया हैं। भले ही उसे दुष्कर्म खुद को और अपनी पीढ़ियों को मोक्ष प्राप्त कराने के लिए किये हो लेकिन फिर भी उसने जो किया था उसे किसी भी शास्त्र में सही नहीं ठराया जा सकता और यही कारण हैं की रावण का नाम हमेशा बुराई के अस्तित्व को दिखाने के लिए लिया जाता हैं।
आपने प्रभु श्री राम के मंदिर तो अनेको देखे होंगे हेना? लेकिन क्या कभी रावण का कोई मंदिर देखा हैं जहा श्रद्धालुओं की भीम उमड़ती हो? अब आप ये सोच रहे होंगे कि भला अगर रावण बुराई का प्रतीक हैं तो कोई क्यों ही उसकी पूजा करेगा लेकिन ये सच हैं कि एक मनीर में रावण की भी पूजा की जाती हैं। उनके भी अनेको भक्त आज भी उनकी अराधना करते हैं। यहां तक कि कोई भी शुभ कार्य करने से पहले रावण के मंदिर में न्योता दिया जाता है। जिसके बाद ही कोई भी कार्य गांव में संपन्न होता है। रावण गांव के लोग ‘रावण’ को अपना कुल देवता मानते हैं और गांव में पूजा भी उन्ही की होती है दूसरी किसी की नहीं।
जिस मामले में खुद यहां के पुजारी नरेश महाराज ने बताया कि, “रावण का यह गांव चेतन स्थान है. सभी कार्य रावण महाराज की कृपा से अच्छे होते हैं. कोई भी कार्य जो नहीं हो रहा हो वह भी यहां सिद्ध हो जाता है. रामायण, भागवत और कथा करने से पहले रावण महाराज के यहां न्योता रखा जाता है. वहीं शादी भी करने से पहले नारियल और दीया रखकर उनसे आज्ञा ली जाती है इसके बाद ही शादी की जाती है. अगर आपने यहां पर दीया नहीं रखा तो और जिस घर में शादी हो रही है उसे घर में तेल की कढ़ाई भी गरम नहीं हो सकती.”
इस राक्षस को मारने के बाद रावण ने अपनी तलवार दी थी गाढ़
कुल देवता मानने के साथ-साथ यहां के किसी भी गांव वासी ने अगर कोई भी वाहन लिया हैं तो वह सबसे पहले रावण मंदिर के ही दर्शन कराने के लिए उसे लेकर जाएंगे। इसके बाद ही वह व्यक्ति गांव में प्रवेश करेगा। पुजारी जी का कहना है कि, “त्रेतायुग की बात है कि यहां सामने पहाड़ है. जहां पर एक राक्षस रहता था यहां उससे लड़ने वाला कोई नहीं था, इसके बाद वह लंका गया, लंका में उसने रावण को ललकारा और कहा हमारे क्षेत्र में मुझसे लड़ने वाला कोई नहीं है, इस पर रावण ने कहा कि मैं तुमसे लड़ने को तैयार हूं तुम्हारे ही क्षेत्र में.
इसके बाद रावण ने उस राक्षक का वध किया और उसको शांत कर दिया. रावण ने यहीं पर विश्राम किया. उसी समय से यहां राक्षस राज रावण की विश्राम करती हुई मूर्ति है. राक्षस को मारने के बाद रावण ने अपनी तलवार भी वहीं पर गाड़ दी थी, रावण की वह तलवार मंदिर के ठीक सामने है जहां पर तालाब भी मौजूद है.”