ना सिर्फ भगवान हनुमान बल्कि इन 7 चिरंजीवियों को भी प्राप्त हैं अमर रहने का वरदान - Punjab Kesari
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ना सिर्फ भगवान हनुमान बल्कि इन 7 चिरंजीवियों को भी प्राप्त हैं अमर रहने का वरदान

प्राचीन हिंदू इतिहास और पुराणों के अनुसार ऐसे सात व्यक्ति हैं, जो चिरंजीवी हैं। तो जानिए ऐसे ही

6 अप्रैल आज के दिन को बेहद ही पावन माना जाता हैं कहा जाता हैं इस दिन भगवान राम के सबसे बड़े भक्त और देवो के देव महादेव ने हनुमान के रूप में धरती पर जन्म लिया था। जी हाँ….! हम बात कर रहे हैं अंजनी पुत्र बजरंग बली की। जिन्हे उनके बल, बुद्धि और ना जाने कितने सारे गुणों के लिए जाना जाता हैं। आज उनकी जन्मतिथि के मौके पर हम आपको बताएंगे ऐसे 7 चिरंजीवियों के बारे में जिन्हे हनुमान के साथ ही अमर रहने का वरदान प्राप्त हुआ था। 
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सीता माता ने हनुमान को लंका की अशोक वाटिका में राम का संदेश सुनने के बाद आशीर्वाद दिया था कि वे अजर-अमर रहेंगे। उन्हें वरदान मिला है कि उन्हें ना कभी मौत आएगी और ना ही कभी बुढ़ापा। इस कारण भगवान हनुमान को हमेशा अक्षय शक्ति का स्रोत माना गया है क्योंकि वे चिरयुवा हैं।
1. कृपाचार्य 
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इस लिस्ट में सबसे पहला नाम आता हैं कृपाचार्य का। महाभारत के अनुसार कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के कुलगुरु थे। कृपाचार्य गौतम ऋषि पुत्र हैं और इनकी बहन का नाम है कृपी। कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था। कृपाचार्य, अश्वथामा के मामा हैं। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य ने भी पांडवों के विरुद्ध कौरवों का साथ दिया था।
2. अश्वथामा
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ग्रंथों में भगवान शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन भी मिलता है। उनमें से एक अवतार ऐसा भी है, जो आज भी पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। ये अवतार हैं गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का। द्वापरयुग में जब कौरव व पांडवों में युद्ध हुआ था, तब अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था। महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे। अश्वत्थामा अत्यंत शूरवीर, प्रचंड क्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने ही अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था।
3. ऋषि मार्कण्डेय 
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भगवान शिव के परम भक्त हैं ऋषि मार्कण्डेय। इन्होंने शिवजी को तप कर प्रसन्न किया और महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि के कारण चिरंजीवी बन गए।
4. विभीषण
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राक्षस राज रावण के छोटे भाई हैं विभीषण। विभीषण श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। जब रावण ने माता सीता हरण किया था, तब विभीषण ने रावण को श्रीराम से शत्रुता न करने के लिए बहुत समझाया था। इस बात पर रावण ने विभीषण को लंका से निकाल दिया था। विभीषण श्रीराम की सेवा में चले गए और रावण के अधर्म को मिटाने में धर्म का साथ दिया। तब श्रीराम ने उन्हे अमरत्व का वरदान दिया था। 
 5. राजा बलि
 शास्त्रों के अनुसार राजा बलि भक्त प्रहलाद के वंशज हैं। बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था। इसी कारण इन्हें महादानी के रूप में जाना जाता है। राजा बलि से श्रीहरि अतिप्रसन्न थे। इसी वजह से श्री विष्णु राजा बलि के द्वारपाल भी बन गए थे। नियम से बंधे होने की वजह से राजा बलि को अमरता प्राप्त है। 
6. ऋषि व्यास
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ऋषि भी अष्ट चिरंजीवी हैँ और इन्होंने चारों वेद (ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद) का सम्पादन किया था। साथ ही, इन्होंने ही सभी 18 पुराणों की रचना भी की थी। महाभारत और श्रीमद्भागवत् गीता की रचना भी वेद व्यास द्वारा ही की गई है। इन्हें वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है। वेद व्यास, ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था और इनका रंग सांवला था। इसी कारण ये कृष्ण द्वैपायन कहलाए।
 7. परशुराम
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भगवान विष्णु के छठें अवतार हैं परशुराम। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। इनका जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है। परशुराम का जन्म समय सतयुग और त्रेता के संधिकाल में माना जाता है। परशुराम का प्रारंभिक नाम राम था। राम ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। इन्हें भी अमर होने का वरदान मिला है। 

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