निर्जला एकादशी के दिन व्रत के साथ भगवान विष्णु के इस मंत्र का जप करने से होंगी सभी मुरादें पूरी - Punjab Kesari
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निर्जला एकादशी के दिन व्रत के साथ भगवान विष्णु के इस मंत्र का जप करने से होंगी सभी मुरादें पूरी

पूरे साल में कुल 24 बार एकादशी तिथि आती है। एकादशी का व्रत करने से भगवान नारायण का

पूरे साल में कुल 24 बार एकादशी तिथि आती है। एकादशी का व्रत करने से भगवान नारायण का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। लेकिन इन सारी एकादशियों में से ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानि जिसे निर्जला-एकादशी कहा जाता है इसको सबसे ज्यादा जरूरी एकादशी माना गया है। निर्जला एकादशी के दिन 24 घंटे बिना खाए-पीए निर्जला व्रत रखा जाता है। बता दें कि इस साल निर्जला एकादशी का व्रत 13 जून के दिन यानि गुरुवार को है। 
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इस विशेष दिन पर भगवान नारायण की पूजा-अर्चना

निर्जला एकादशी व्रत के कठोर नियमों की वजह से यह व्रत सभी एकादशी व्रतों में सबसे ज्यादा मुश्किल व्रत माना जाता है। जिसे निर्जला एकादशी व्रत कहते हैं। क्योंकि इस व्रत में भोजन ही नहीं बल्कि आप एक बूंद पानी की भी नहीं पी सकते हैं। जो लोग इस व्रत को सच्चे मन से करते हैं और अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए भगवान नारायण के विशेष मंत्रों का जप, श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ, श्री सत्यनारायण कथा एवं एकदशी कथा का पाठ करते हैं।
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इस मंत्र का करें जप

इस व्रत को विष्णु भगवान का सबसे प्रिय वृत बताया गया है, निर्जला एकादशी को पूरे दिन- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इस मंत्र कम से कम 1100 बार का जप करना चाहिए।
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निर्जला एकादशी व्रत के लाभ

जो भी भक्त पूरे साल में पडऩे वाली पूरी 24 एकादशियों के व्रत नहीं रख पाते हैं यदि वो सिर्फ एक निर्जला एकादशी का व्रत ही कर लें तो उन्हें दूसरी सभी एकादशियों का लाभ मिल जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन उपवास करने से कई जन्मों के पापों का नाश भी हो जाता है। 
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निर्जला एकादर्शी उपवास के कुछ नियम

-निर्जला एकादशी व्रत की शुरूआत दिन सूर्योदय से करीब 2 घंटे पहले हो जाता है। इसलिए इस दिन सूर्योदय से पहले ही सुबह के समय उठकर स्नान आदि करने के बाद संकल्प लेकर व्रत शुरू कर देना चाहिए। 
-इस दिन खासतौर पर भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए। 
-निर्जला एकादशी के दिन आलस,ईष्र्या,झूठ और बुराई जैसे पाप करने से हमेशा बचना चाहिए।
-इस दिन किसी को भी ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए।
-इस दिन माता-पिता और गुरू के चरण छूकर उनका आर्शीवाद लेना चाहिए।
-इस दिन श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ जरूर करना चाहिए। 
-ये व्रत पूरे दिन भूखे-प्यासे रहकर करना चाहिए। 

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