28 सितंबर यानि शनिवार के दिन पितृ विसर्जन हो जाएगा। इस खास दिन को पितर विसर्जनी अमावस्या या फिर सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है। इसके बाद अगले दिन 29 सितंबर से शारदीय नवरात्रि का शुआंरभ हो जाएगा। इसलिए आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पितृ विसर्जन के बाद नवरात्रि व्रत की तैयारी की जा सकती है।
क्योंकि इस बार नवरात्रि में किसी तिथि का क्षय नहीं है और आप नवरात्रि व्रत से जुड़ी सभी सामग्री भी खरीद सकते हैं। नवरात्रि के पवन पर्व पर हर घर कलश स्थापना और जो बोए जाते हैं। मान्यता यह भी है कि कलश के मुंह में भगवान विष्णु,गले में रुद्र,मूल में ब्रह्मा एंव मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है।
कलश स्थापना का शुभ समय…
नवरात्रि के दिनों मां दुर्गा की कृपा पाने के लिए विधिविधान से कलश पूजन किया जाएगा। ज्योतिषअचार्य के मुताबिक प्रतिपदा तिथि 29 सितंबर को सुबह 6:04 मिनट से शुरू होगी,जिसका मान हस्त नक्षत्र में रात 10:01 मिनट तक रहेगा। वहीं कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त स्थिर लग्न में सुबह 11:36 बजे से दोपहर 12:24 बजे तक रहेगा।
ये है नवरात्रि व्रत की साम्रगी…
माता की मूर्ति,चौकी पर बिछाने के लिए लाल या पीला कपड़ा,माता की लाल चुनरी ,कलश,ताजा आम के पत्ते,फूल माला, एक जटा वाला नारियल,पान के पत्ते,सुपारी,इलायची,लौंग,कपूर,रोली, सिंदूर,मौली (कलावा),चावल,घी, रुई या बत्ती, हवन ,सामग्री,पांच मेवा,कपूर,जवारे बोने के लिए मिट्टी का बर्तन,माता के श्रंगार
जहां 7 अक्टूबर के दिन महानवमी की पूजा होगी उसके बाद 8 अक्टूबर के दिन दशहरा के साथ समापन हो जाएगा। मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए भक्त पूरे नौ दिन तक माता रानी के व्रत रखकर पूजा-अर्चना करेंगे। नवरात्रि पर्व को दुर्गापूजा के नाम से भी जाना जाता है।
बता दें कि साल में चार बार नवरात्रि आते हैं। पहला चैत्र,दूसरा आषाढ़,तीसरा अश्विन और चौथा पोष महीने में मनाया जाता है। ये चारों बार आने वाले नवरात्रि शुक्ल पक्ष प्रतिपदा पहली तिथि से शुरू होकर नवमी तिथि पर्यन्त तक मनाया जाता है। जिसमें सबसे अधिक महत्व शारदीय नवरात्रि का होता है।