हर साल 1 अगस्त को माउंटेन क्लाइम्बिंग डे के तौर पर मनाया जाता है। जैसा की सभी जानते है कि माउंट एवरेस्ट दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है और इस पर चढ़ने का सपना तो लाखों लोग देखते हैं। माउंटेन क्लाइम्बिंग डे मनाने का मकसद लोगों में माउंट क्लाइंबिंग के प्रति जागरूकता पैदा करना है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग पर्वतारोहण के क्षेत्र में सही ट्रेनिंग लें और कामयाबी की नई कहानियां लिखें।
ऐसे में आज माउंटेन क्लाइम्बिंग डे के मौके पर हम आपको कि माउंट एवरेस्ट से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां देने वाले है जिनके बारे में शायद ही आपने कभी सुना होगा। वैसे इस चोटी पर चढ़ने की हर किसी की हिम्मत नहीं होती है। इस चोटी पर चढ़ने के लिए एक-दो दिन या एक दो सप्ताह से ज्यादा का वक्त लगता है। इसके अलावा दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करना जितना मुश्किल है उतना ही खर्चीला भी है।
भारत के पड़ोसी देश नेपाल में स्थित माउंट एवरेस्ट की ऊंची समुद्र तल से 8,850 मीटर है। हर साल इस चोटी पर चढ़ने के लिए सैकड़ों लोग तैयारी करते है लेकिन उनमें से कुछ ही कामयाब हो पाते हैं। माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई हर साल बढ़ जाती है, ये बात जानकर आप जरूर चौंक जाएंगे। लेकिन ये बात बिल्कुल सच है। दरअसल, टेक्टोनिक प्लेटें खिसकने के साथ-साथ हिमालय को ऊपर की ओर धकेलती है, जिसके चलते माउंट एवरेस्ट हर साल 2 सेंटीमीटर ऊंचा हो जाता है।
माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करने वाले हर शख्स को सबसे पहले 2 बजे के नियम के बारे में जानकारी दी जाती है। बता दें कि माउंट एवरेस्ट के ठंडे और अप्रत्याशित मौसम के चलते पर्वतारोहियों को सलाह दी जाती है कि वो दोपहर 2 बजे तक शिखर तक पहुंच जाएं। अगर कोई पर्वतारोहण तय नियम तक शिखर तक नहीं पहुंच पाता है तो उसे वापस आने को कहा जाता है।
2 बजे के नियम के पीछे की मुख्य वजह ये है कि दो बजे के बाद तापमान में गिरावट शुरु हो जाती है और मौसम खराब होने लगता है। ऐसे में जान को खतरा बढ़ जाता है इसलिए माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वालों को 2 बजे के नियम का मुख्य रूप से पालन करता होता है। इस सफर की शुरुआत बेस कैंप से होती है जहां पहुंचने में ही 10 से 14 दिन का समय लगता है और एवरेस्ट बेस कैंप से माउंट एवरेस्ट तक पहुंचने में 39-40 दिनों का समय लगता है।
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के लिए आपका फिट होना तो लाजमी है। मगर इससे भी ज्यादा जरूरी आपके पास पैसा होना चाहिए। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने से पहले ही आपको नेपाल सरकार को 11 हजार डालर यानी करीब सवा नौ लाख रुपये फीस चुकानी होती है। इतना ही माउंट एवरेस्ट की पूरे सफर में आपको करीब 80 लाख रूपये से ज्यादा खर्च करने पड़ सकते हैं।
दुनिया की सबसे ऊंची चोटी की खोज सबसे पहले सर जॉर्ज एवरेस्ट ने की थी। उन्हीं के सम्मान में साल 1865 में इसका नाम माउंट एवरेस्ट रखा गया था। जबकि साल 1841 में सर जॉर्ज एवरेस्ट ने इसकी खोज करने के बाद इसका नाम पीक 15 रखा था। माउंट एवरेस्ट को कई नामों से पुकारा जाता है जैसे नेपाल में सागरमाथा तो तिब्बत में चोमोलुंगमा के नाम से जाना जाता है।