तमिलनाडु में एक बस ड्राइवर को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा क्योंकि वह अपने बैग में रखे 7 रुपये का हिसाब नहीं दे पाया। राज्य स्तरीय सरकारी परिवहन विभाग के बस ड्राइवर को आखिरकार 8 साल बाद न्याय मिल गया है। मद्रास हाई कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा कि कोर्ट को ये चौंकाने वाला लगा कि कंडक्टर ने महज 7 रुपये के लिए नौकरी छोड़ दी। मद्रास उच्च न्यायालय के अनुसार, निगम द्वारा एक कंडक्टर को सज़ा देने से अदालत की अंतरात्मा हिल गई।
उस कंडक्टर को न्याय दिलाने के लिए हाई कोर्ट ने परिवहन निगम को उसकी बहाली पर विचार करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया। इसके अलावा, उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि बस कंडक्टर को अपना पूरा वेतन और साथ ही लंबित वेतन वृद्धि, पदोन्नति और अन्य लाभ का भुगतान करना होगा। कंडक्टर अय्यनार ने कथित तौर पर निगम की पसंद के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की। जिसका केस वकील एसएलएम भारती ने उठाया था।
अय्यनार से कोई शुल्क लिए बिना उनका केस लड़ा था। साथ ही, न्यायमूर्ति पीबी बालाजी ने परिवहन निगम को फटकार लगाई और कहा कि केवल 7 रुपये से अधिक की खोज के परिणामस्वरूप राजस्व हानि का कोई भी दावा निराधार है। वाक्य के संदर्भ में इसका कोई मतलब नहीं है। विशेष रूप से, महिला यात्री ने कंडक्टर अय्यनार को भुगतान किया था, जिस पर तमिलनाडु परिवहन निगम ने उसे टिकट देने में विफल रहने का आरोप लगाया था।
फलस्वरूप राजस्व की हानि हुई। उनके वकील भारती के अनुसार, जिस महिला का उल्लेख किया गया है उसे अय्यनार ने पांच रुपये का टिकट दिया था, जिन्होंने यह भी तर्क दिया कि निगम का दावा झूठा है। उसे कहीं नजदीक जाना था, लेकिन उसका टिकट खो गया था।
वकील ने आगे कहा, महिला ने कथित तौर पर कंडक्टर पर उसे टिकट नहीं देने का आरोप लगाया ताकि वह चेकिंग के दौरान सजा से बच सके। इसके अलावा बस में सभी के पास टिकट थे। कलेक्शन बैग में सिर्फ रुपये थे। 2 और, जिसे एक यात्री को वापस देना पड़ा।