कई सारे भारत में अलग तरह के मंदिर हैं जिनकी मान्यताएं एक दूसरे से बहुत अलग हैं। ऐसा ही एक मंदिर मध्य प्रदेश में है जो अपनी अनोखी मान्यता की वजह से लोकप्रिय है। मध्य प्रदेश के रतलाम के माणक में यह मंदिर स्थित है। इस अनोखे मंदिर में प्रसाद के तौर पर खाने की चीजें नहीं मिलती हैं।
भक्त इस मंदिर में महालक्ष्मी के अलावा कुबेर महाराज की पूजा करते हैं। इस मंदिर में अलग की रौनक दिवाली के समय पर हो जाती है। बता दें कि खास दिपोत्सव इस मंदिर में दिवाली के समय पर आयोजित होता है।
सोने-चांदी के गहने दिए जाते हैं भक्तों को
अधिकतर मंदिरों में मिठाई या खाने की चीजें प्रसाद के तौर पर दी जाती हैं लेकिन रतलाम के माणक के इस महालक्ष्मी मंदिर में प्रसाद के रूप में गहने भक्तों को देते हैं। इस मंदिर में सोने चांदी के सिक्क भक्तों को प्रसाद में देते हैं।
यह प्रथा चली आ रही है सालों से
सालों से श्रद्धालुओं की भीड़ महालक्ष्मी के मंदिर में रहा करती थी। इस मंदिर में माता के चरणों में आने वाले भक्त जेवर और नकदी समर्पित करते हैं। उसके बाद भक्तों में ही गहने और नकदी प्रसाद के तौर पर देते हैं। इस मंदिर में दिवाली के समय पर धनतेरस से लेकर अगले 5 दिनों का दीपोत्सव आयोजित करते हैं।
माता का श्रृंगार होता है दिवाली पर गहनों को रुपयों से
दिवाली के समय महालक्ष्मी को फूलों से नहीं बल्कि जो गहने और रुपए भक्तों ने समर्पित किए होते हैं उनसे सजाते हैं। कुबेर का दरबार भी दिवाली के समय लगे दीपोत्सव पर मंदिर में लगाया जाता है। इसके अलावा जो भैक्त दिवाली के समय मंदिर में आते हैं उन्हें सोने और चांदी के जेवर या रुपए प्रसाद के रूप में दिए जाते हैं।
भक्त खाली हाथ नहीं लौटते दिवाली पर
इस मंदिर के कपाट दिवाली के दिन पूरे 24 घंटों तक भक्तों के लिए खुले रहते हैं। जो भी भक्त दिवाली के समय मंदिर में आता है वह खाली हाथ नहीं जाता है। इस मंदिर में कुबेर की पोटली धनतेरस के दिन महिला श्रद्धालुओं को देते हैं और भक्तों को दिवाली पर भी जेवर या रुपए जरूर दिए जाते हैं।