आपने सुना होगा न की गरीबी इंसान से क्या कुछ नहीं करवा लेती किसी के पास खाने को खाना नहीं हैं तो किसी के पास सर छिपाने के लिए घर नहीं हैं। ऐसी ही एक कहानी हैं. डूंगरपुर शहर में एक बाइक सवार ने अपनी बाइक पर घर का पूरा सामान रखा है. बाइक सवार के साथ उसकी पत्नी और दो बच्चे भी सफर करते हैं.
इस पर पानी का ड्रम, बाल्टी और बच्चे के खिलौने लगे हुए हैं. जहां भी खाली जगह मिलेगी ये वहीं अपना आशियाना बना लेते हैं. फिर दूसरे दिन सामना उठाते हैं और चल देते, रोज जगह बदलती है और रोज नया आशियाना बनता है. इस जोखिम भरे जुगाड़ पर ये परिवार बिना सुरक्षा के इधर-उधर सफर करता है.
रोज निकलते हैं एक नए आशियाने की तलाश में
बाइक पर सामान के साथ परिवार लेकर घूमते हुए आदमी का नाम है रामलाल वागरी, जो परिवार के साथ कबाड़ा बीनने का काम करता है. ये परिवार हर दिन एक नई जगह जाताा है और कबाड़ एकत्रित करता है और शाम को ये कबाड़ बेच देता है. शाम तक इधर-उधर घूमकर कर अपने आशियाने का बंदोबस्त करते हैं. अगले दिन फिर सवेरे से शाम तक यहीं काम और एक नए आशियाने की तालाश में निकल पड़ते हैं.
बाइक पर हर जरुरत का सामान
रामलाल वागरी बताते हैं कि उनके पत्नी के अलावा उनके दो बच्चें है. बेटा छोटा और बेटी बड़ी है. कबाड़ा बेचकर एक बाइक खरीदी है. उसी पर पूरे घर का सामान रहता है. हर जरुरत का सामान बाइक में साथ में रहता है. वहीं, जब रामलाल से पूछा की बच्चों को पढ़ाते क्यों नहीं हो तो रामलाल ने धीमी आवाज में कहा कि, हमारा कोई तय काम नहीं और तय जगह नहीं है. कल हम कहां जाएंगा और कहां रुकेंगे इसका भी नहीं पता. बच्चों को पढ़ाने के लिए एक जगह रुकना होता है, जो हम कर नहीं सकते है.