इस बार भाई दूज का पर्व 29 अक्टूबर को मनाया जाएगा। यह पर्व भाईयों के प्रति बहनों की श्रद्धा और विश्वास का है। भाई दूज का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन मनाया जाता है,मगर इस त्योहार को मनाने के पीछे की वजह क्या है इस बारे में बहुत ही कम लोगों को मालूम होगा। भाई-दूज का पर्व गोवर्धन के अगले दिन मनाया जाता है। इसे यमद्वितीया भी कहते हैं।
इसलिए भाई-दूज के पर्व पर यम देव की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि जो भी यम देव की उपासना करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। इस दिन बहन अपने भाई को तिलक लगाकर और मिठाई खिलाकर उसकी लंबी आयु की कामना करती है।
इसके बदले में भाई भी अपनी बहन की रक्षा के लिए वचन देता है। इस दिन भाई को अपनी बहन के घर भोजन करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। मिथिला नगरी में भाई-दूज को आज भी यमद्वितीया के नाम से जाना जाता है। इस खास दिन चावलों को पीसकर एक लेप भाईयों के दोनों हाथों में लगाया जाता है।
भाई-दूज की थाली इन चीजों के बिना है अधूरी
भाई के हाथ में चावल का लेप लगाने के बाद उस पर पान के पांच पत्ते,सुपारी और चांदी का सिक्का रखा जाता है। उस पर जल उड़ेलते हुए भाई की लंबी आयु के लिए मंत्र बोला जाता है। भाई की आरती उतारते समय बहन की थाली में सिंदूर,फूल,चावल के दाने,पान,सुपारी,नारियल,फूल माला और मिठाई जरूर होनी चाहिए।
इस तरह हुई भाई दूज की शुरूआत
पौराणिक मान्यता के मुताबिक ऐसा बताया जाता है कि इसी दिन यमुना ने अपने भाई यमराज की लंबी उम्र के लिए व्रत किया था और उन्हें अन्नकूट का भोजना खिलाया था। कथा के मुताबिक यम देवता इसी दिन अपनी बहन से मिले थे। यमुना अपने भाई से मिलने के लिए काफी ज्यादा व्याकुल थी अपने भाई से मिलकर यमुना बहुत खुश हुई। साथ ही उसने अपने भाई की खूब आवभगत भी की।
यम ने अपनी बहन से खुश होकर उसे वरदान दिया कि इस दिन भाई-बहन दोनों एक साथ यमुना नदी में स्नान करेंगे। तो उन्हें मुक्ति मिल जाएगी। इस वजह से इसी दिन यमुना नदी में भाई-बहन के साथ स्नान करने का बड़ा महत्व है। इसके साथ-साथ यमुना ने अपने भाई से वचन लिया कि आज के दिन हर भाई को अपनी बहन के घर जाना चाहिए। तभी से ही भाई दूज मनाने की प्रथा चली आ रही है।