करवा चौथ का व्रत हिंदू धर्म में महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन विवाहित महिलाएं छलनी से चांद देखकर व्रत खोलती हैं।दिन भर निर्जला व्रत रखने के बाद महिलाएं को छलनी से चंद्रमा को देखकर व्रत खोलती हैं। क्या आप जानते हैं कि इस दिन चांद देखने के लिए छलनी का ही इस्तेमाल क्यों किया जाता है? इसके पीछे अलग-अलग कहावतें प्रचलित हैं।
पौराणिक मान्यता के मुताबिक प्राचीन काल में वीरवती नाम की पतिव्रता स्त्री ने करवा चौथ का व्रत रखा। भूख की वजह से जब उसकी हालत खराब हुई तो उसके भाइयों ने चांद के उगने से पहले ही एक पेड़ की ओट में छलनी लगाकर उसके पीछे दीया जला दिया। इसके बाद वीरवती ने उस रोशनी को चांद समझकर व्रत खोल दिया, जिससे उसके पति की मौत हो गई।जब वीरवती को इस बात का पता चला तो उसे बहुत दुख हुआ। उसने लेप लगाकर पति के शव को सुरक्षित रखा और नियमित रूप से भगवान का पूजा पाठ करती रही। उसने अगले साल फिर करवा चौथ का व्रत रखा। जिसके बाद करवा चौथ माता ने प्रसन्न होकर उसके पति को जीवनदान दे दिया। तब से छलनी में से चांद को देखने की परंपरा आज तक चली आ रही है।
कहते हैं पौराणिक कथाओं के अनुसार, चंद्रमा को ब्रह्मा का रूप कहा जाता, जो सुंदरता, सहनशीलता और प्रेम का प्रतीक है। ऐसे में जब महिलाएं छलनी से चांद देखने के बाद अपने पति को देखती हैं तो उनमें भी वह गुण आ जाते हैं।
मान्यता के अनुसार, करवा चौथ का चंद्रमा ‘कार्तिक का चंद्रमा है’, जिसे भगवान शिव और उनके पुत्र भगवान गणेश का एक रूप माना जाता है। उत्तर भारत में महिलाएं बड़ों के सम्मान के प्रतीक के रूप में घूंघट पहनती हैं इसलिए विवाहित महिलाएं छलनी से चंद्रमा को देखकर उन्हें सम्मान देती हैं। माता करवा की कथा सुनने के साथ इस दिन भगवान गणेश की कथा भी जरूर सुनें।
करवाचौथ का व्रत कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है।मान्यता है कि इसे रखने से सुख-सौभाग्य मिलता है और दांपत्य जीवन में प्रेम बरकरार रहता है।इस व्रत को शाम के समय चंद्र दर्शन के बाद खोलने की परंपरा है साथ ही ये भी मान्यता है कि करवाचौथ का चांद हमेशा छलनी से ही देखा जाता है।