आखिर क्यों कहते हैं कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली, जानें इसके पीछे की पौराणिक कहानी - Punjab Kesari
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आखिर क्यों कहते हैं कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली, जानें इसके पीछे की पौराणिक कहानी

सभी पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा का खास महत्व है और यह श्रेष्ठ भी है। हिंदू शास्‍त्रों में बताया

सभी पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा का खास महत्व है और यह श्रेष्ठ भी है। हिंदू शास्‍त्रों में बताया गया है कि देवलोग पर हाहाकार मचाने वाले त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध भगवान शिव ने इस दिन किया था। देवताओं ने इस दिन दीपावली उसके वध होने की खुशी में मनाई थी। 
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बता दें कि देव दीपावली हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर लोग मनाते हैं। मान्यताओं के मुताबिक मतस्यावतार भगवान विष्‍णु ने इस दिन लिया था। गंगा के साथ बाकी पवित्र नदियों में इस दिन स्नान किया जाता है और कहते हैं कि व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। 
तिथि और शुभ मुहूर्त कार्तिक पूर्णिमा की 

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12 नवंबर 2019 तिथि है कार्तिक पूर्णिमा की। 
पूर्णिमा तिथि आरंभः 11 नवंबर 2019 को शाम के 6 बजे 2 मिनट से है
पर्णिमा तिथि समाप्तः 12 नवंबर 2019 को शाम के 7 बजकर 4 मिनट तक है
ये है कार्तिक पूर्णिमा की कथा
पौराणिक कथा में बताया गया है कि तारकासुर नामक राक्षस था। तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ये तीनों तारकासुर के पुत्र थे। तारकासुर का वध भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने किया जिसके बाद तीनों पुत्र अपने पिता की मृत्यु से अाहत हो गए थे। उसके बाद ब्रह्माजी से वरदान के लिए तीनों पुत्रों ने घोर तपस्या की थी। तीनों की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मजी ने उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा था। वरदान में ब्रह्मा जी से उन तीनों ने अमर होने का वरदान मांगा। लेकिन तीनों को ब्रह्मा जी ने कहा मैं यह वरदान नहीं दे सकता दूसरा कोई मांग लो। 
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ब्रह्मा जी के ऐसे कहने पर तीनों ने  बहुत विचार किया फिर उन्हें कहा कि हम तीनों को अलग तीन नगरों में निर्माण कराएं जिसमें हम तीनों पूरी पृथ्वी और आकाश घूम सकें। उसके बाद एक हजार साल बाद जब हम तीनों मिलें और तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन तीनों को यह वरदान दे दिया। 
यह वरदान पाकर तीनों की प्रसन्न हो गए थे। मयदानव को ब्रह्माजी ने उन तीनों के लिए नगर निर्माण करने के लिए कहा। सोने का नगर तारकक्ष के लिए बना, चांदी का नगर कमला के लिए बना और लोहे का नगर विद्युन्माली के लिए बना। तीनों लोकों पर अपना अधिकार तीनों ने मिलकर जमा लिया। इन तीनों राक्षसों से इंद्र देवता भयभीत हो गए जिसके बाद वह भगवान शंकर की शरण में पहुंच गए। भगवान शिव ने इंद्र की सारी बात सुनकर एक दिव्य रथ का निर्माण इन राक्षसों का वध करने के लिए किया। 
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देवताओं से इस दिव्य रथ की हर एक चीज को बनाया गया। इस रथ के पहिए चंद्रमा और सूर्य से बनाए। इस रथ के चार घोड़े इंद्र, वरुण, यम और कुबेर को बनाया। धनुष इसके हिमालय बने और प्रत्यंचा इसके शेषनाग बने। इसके बाण भगवान शिव खुद बने थे और अग्निदेव बाण की नोक बने। भगवान शिव सवार हुए इस दिव्य रथ पर। 
तीनों भाइयों और भगवानों से बने इस रथ के बीच बहुत भंयकर युद्ध हुआ। अर्थ की सीध में जैसे ही ये तीनों राक्षस आए तीनों का नाश भगवान शिव ने बाण छोड़कर कर दिया। भगवान शिव को त्रिपुरारी इसी वध के बाद कहा गया। कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने यह वध किया। इसी वजह से त्रिपुरी पूर्णिमा भी इस दिन को कहते हैं। 

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