निकाह के पांच साल बाद पति ने छोड़ा, तब से मुस्लिम महिला शबनम रंगी कृष्ण रंग में, अब वृंदावन में बनी मीरा - Punjab Kesari
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निकाह के पांच साल बाद पति ने छोड़ा, तब से मुस्लिम महिला शबनम रंगी कृष्ण रंग में, अब वृंदावन में बनी मीरा

अब शबनम कहती है कि उनका अपने परिवार से और इस दुनिया से कोई भी लेना देना नहीं

कृष्ण कन्हैया की दीवानी हो तो काफी गोपियां रहती है क्या आपने कभी सच में किसी ऐसी गोपी की कहानी सुननी है जो अपना धर्म चाहती सब कुछ छोड़ कर अपना पूरा जीवन सिर्फ कृष्ण को ही देने के लिए आ जाती है। हां आज की खबर में हम बात करेंगे कैसे मुस्लिम महिला की जो अपना सब कुछ त्याग कर सिर्फ कान्हा के प्रेम में उनके रंग में रंगने के लिए वृंदावन आ जाती है और अपने जीवन को वह कान्हा के रंग में ही रंग ते हुए जा रही है। 
आइए जानते हैं इस महिला की दिलचस्प कहानी। शबनम अब अपने धर्म से अलग होकर पूरी तरीके से कृष्ण भक्ति के रंग में रंगी जा चुकी है मुरादाबाद स्थित जिगर कॉलोनी की निवासी शबनम इकराम हुसैन की बेटी है। इकराम हुसैन बर्तन और पीतल की मूर्तियां बनाने का काम करते हैं और उनकी बेटी को शुरू से ही हिंदू देवी-देवताओं के प्रति बेहद लगाव रहा है। 
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हमें बताया गया कि उनकी बेटी को कान्हा से काफी प्रेम था और लगभग 4 महीने पहले ही आना की मोहब्बत ने उन्हें ब्रिज भूमि की ओर खींच लाया और हाथ में लड्डू गोपाल की छोटी प्रतिमा लेकर वह वृंदावन चली आई। अब बताया जाता है कि हां गोवर्धन परिक्रमा मार्ग पर स्थित गोपाल आश्रम में उसे एक रहने का आश्रय भी मिल गया और अब वह अपना जीवन भगवान कृष्ण को समर्पित करते हुए उनकी भक्ति में जी रही है। 
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बताया गया कि शबनम की शादी दिल्ली के रहने वाले निवासी के साथ साल 2002 में ही कर दी गई थी लेकिन 5 साल बाद ही शबनम का तलाक हो गया और वह अपने पिता के घर वापस लौट आई साथ ही हमें यह भी जानकारी दी गई कि सब नाम अपने परिवार के चार भाई-बहनों तीसरे नंबर पर आती है और कृष्ण की भक्ति में डूबी रहती है। जानकारी कहती है कि शबनम ने अपने पति से तलाक लेने के बाद दिल्ली के एक प्राइवेट कंपनी में लेडी बाउंसर के रूप में काम भी किया था। 
अब शबनम कहती है कि उनका अपने परिवार से और इस दुनिया से कोई भी लेना देना नहीं है अपने माता पिता या भाई बहन से उनकी कई साल पहले ही बात छूट चुकी है अब हमेशा उनकी हाथ में लड्डू गोपाल की एक मूर्ति रहती है और उन्हीं के नाम को आधार बनाकर वह अपने जीवन को जी रही है।

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