होली के पर्व पर कई पकवान बनाए जाते हैं, इन्हीं में से एक है गुजिया। ये पारंपरिक मिठाई देश में बहुत मशहूर है और गांव से लेकर शहरों तक हर घर में इसे चाव से खाया जाता है। मावा, चाशनी और मैदा से बनी गुजिया मुंह में रखते ही घुल जाती है। बच्चों से लेकर बड़ों तक सब इसे खाना खूब पसंद करते हैं साथ ही मेहमान भी सबसे पहले गुजिया को उठाते हैं।
पूरे देश में मशहूर इस पकवान का लोगों के बीच अलग ही क्रेज हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गुजिया का इतिहास कितना पुराना है और यह कहां से आई है? अगर आप नहीं जानते है तो आज जान लीजिए।
मध्यकालीन युग से गुजिया का इतिहास
इतिहास के अनुसार, गुजिया सबसे पहले 13वीं सदी में बनाया गया था, ऐसा माना जाता है कि गुजिया समोसे का ही एक मीठा रूप है और यह अरब देशों से भारत तक पहुंची है, कहा जाता है कि गुजिया का आइडिया तुर्किये की देन है। तुर्किये में बनाया जाने वाला मशहूर बकलावा, गुजिया की तरह की ही डिश है। इसे भी आटे से तैयार की गई परत में ड्राई फ्रूट्स को भरकर तैयार किया जाता है और स्वीटनर के रूप में मसालेदार शहद का इस्तेमाल किया जाता है।
भारत आया बकलावा
दरअसल, उस दौर में अरब देशों से भारत आए मुस्लिम व्यापारी और मुगल कई तरह के व्यंजन भारत लेकर आए थे, जिसमें से एक बकलावा भी था, भारत में आने के बाद इसमें थोड़े बहुत बदलाव हुए। पहले यह समोसे की शक्ल और फिर चंद्राकार शेप में बनाया जाने लगा, ऐसे इसने गुजिया का रूप ले लिया।
वहीं, भारत की बात करें तो गुजिया बुंदेलखंड की देन मानी जाती है। धीरे-धीरे उत्तरप्रदेश के अलग अलग शहरों में गुजिया बनाई और खाई जाने लगीं। यूपी के बाद बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश और देश के अन्य राज्यों में भी गुजिया मशहूर हो गई। होली पर इसे यहां मैदे की परत में खोया भरकर बनाया जाता है।
500 साल पुरानी परंपरा का इतिहास
वृंदावन के सबसे पुराने मंदिरों में से एक राधा रमण मंदिर जो 1542 में बना था, यहां आज भी गुजिया और चंद्रकला पकवान का हिस्सा है, इससे पता चलता है कि यह कम से कम 500 साल पुरानी परंपरा का हिस्सा है।भारत में गुजिया को कई नामों से जाना जाता है, बिहार में गुजिया को पेड़किया कहते हैं, तो महाराष्ट्र में करंजी और गुजरात में घुघरा कहा जाता है।
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