जब भी दुनिया के सबसे बांध की बात आती है तो भारत का हीराकुंड बांध का नाम सबसे ऊपर रहता है। हीराकुंड बांध ना सिर्फ भारत का बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा मानव निर्मित बांध हैं। इस खबर में हम आपको बताएंगे कि हीराकुंड बांध का निर्माण कब हुआ और कैसे बांध ने विश्व पटल पर अपना नाम बनाया है। बांध जिसका अर्थ होता है किसी की बहाव या रास्ते में आकर उसे रोक देना और बाधा के रूप में उसके रास्ते में खड़े हो जाना।
भारत की हीराकुंड बांध का निर्माण सन 1948 में शुरू हुआ और यह सन 1953 में बनकर तैयार हो गया लेकिन बताया जाता है कि इस बांध पर काम 1997 के बाद शुरू किया गया। यह बांध ना सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के सबसे बड़े बांधों में से एक है। हीराकुंड बांध की लंबाई की बात करें तो यह लगभग 5 किलोमीटर यानी 4.8 किलोमीटर लंबी है और अगर इसके तटबंध की लंबाई जोड़ ली जाए, तो इसकी कुल लंबाई 25 किलोमीटर से भी अधिक हो जाएगी।
उसकी लंबाई चौड़ाई का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इसके बनने से लगभग 743 वर्ग किलोमीटर की एक बड़ी मानव निर्मित झील बन गई है। इस पूरे बांध में दो अलग-अलग विद्युत गृह है यानी कि यहां पर बिजली का निर्माण किया जाता है। इन बिजली घरों से निकलने वाली बिजली की आपूर्ति उड़ीसा बिहार और झारखंड के अलग अलग ही कार्यों में किया जाता है और उनकी कुल क्षमता 307 मेगावाट से अधिक है।
उड़ीसा के संबलपुर से कुछ दूर की दूरी पर पड़ने वाला यह बांध अपने आप में दुनिया का सबसे अनोखा बांध हैं। माना जाता है कि अगर इस बांध की मिट्टी को हटाया गया तो कश्मीर से कन्याकुमारी और डिब्रूगढ़ से गुजरात तक 8 मीटर चौड़ी सड़क पर बड़े आराम से बनाई जा सकती है। बांध के पास बने मानव निर्मित झील पानी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए किया जाता है।
उड़ीसा के कई इलाकों में इस पानी को भेजा जाता है खासकर संबलपुर और आसपास के इलाकों में लोग पूरी तरीके से इसी पानी के ऊपर निर्भर रहते हैं। लंबाई चौड़ाई और अधिक जाकर होने के कारण यह जगह पर्यटन स्थल से भी काफी ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है और उड़ीसा में एक टूरिस्ट स्पॉट के रूप में उभरा हैं।