दो जून की रोटी एक कहावत नहीं बल्कि करोड़ों भूखे पेटों की हकीकत और मेहनत का प्रतीक है। यह कहावत गरीब तबकों के जीवन की सच्चाई को दर्शाती है, जहां दो समय की रोटी जुटाना चुनौतीपूर्ण होता है। इस मुहावरे का साहित्य और फिल्मों में भी व्यापक उपयोग हुआ है।
आज दो जून है ऐसे में आप सोचेंगे कि ये क्या सुन रहे हैं दो जून की रोटी खाया या नहीं। आखिर इस कहावत के पीछे की वजह क्या है? लोग अक्सर क्यों बोलते है 2 जून की रोटी सबको नसीब नहीं होती है। भला किसको नहीं मिली दो जून की रोटी? लेकिन फिर मन में एक सवाल आता है कि दो जून की ही रोटी क्यों है चर्चा में? इन सबके बीच यह निकल कर सामने आया है कि दो जून की रोटी एक कहावत नहीं है, करोड़ों भूखे पेटों की हकीकत और मेहनत का प्रतिक है। तो चलिए जानते है इसके पीछे की पूरी कहानी।
दादी-नानी अक्सर कहती है यह
हम अक्सर कई कहावत सुनते रहते हैं। दादी-नानी हर बात कहावत से ही बात करती है। ऐसे में कई ऐसे कहावत है जिनका अर्थ हम आज तक नहीं जानते हैं। जैसे कि सांप भी मर गया लाठी भी नहीं टूटी, दो जून की रोटी’ . तो चलिए आज ही जान लेते हैं इसका अर्थ। दो जून की रोटी’ का मतलब है दो समय की रोटी जुटाना। यह कहावत अवधि भाषा से लिया गया है। जून का अर्थ है समय। बहुत से गरीब तबकों के लोग के लिए यह कहावत जिंदगी की सच्चाई है, सुबह रोटी मिल गई तो जरुरी नहीं है कि शाम की भी मिल जाएगी।
मीम हो रहा वायरल
आजकल सोशल मीडिया पर ‘2 जून की रोटी’ को लेकर कई मीम्स और जोक्स चल रहे हैं। खास तौर पर 2 जून की तारीख आने वाली है। आज भी 2 जून की रोटी से जुड़े मीम्स खूब वायरल हो रहे हैं। बता दें कि लेखक प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद ने अपनी कहानियों में ‘दो जून की रोटी’ मुहावरे का प्रयोग किया है। फिल्मी पर्दे पर भी इस मुहावरे का खूब प्रयोग हुआ है।
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