1857 का स्वतंत्रता संग्राम भले ही इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया हो. लेकिन, उसकी कुछ निशानियां आज भी हमारे सामने है. इस विद्रोह में कई स्वतंत्र सेनानी शहीद हो गए. विद्रोहियों से बचने के लिए अंग्रेज अपनी जान बचाने को मजबूर हो गए और अंत यह हुआ कि अंग्रेजों को कोई रास्ता नहीं सूझा, तो वह थक हारकर समझौते के लिए उतर आए.
27 जून 1857 को जब अंग्रेज समझौते के लिए उतर आए. तब समझौते के दौरान शहर में सुरक्षित बचे अंग्रेज सैनिकों को प्रयागराज (इलाहाबाद) भेजने के लिए सतीचौरा घाट पर 40 नाव मंगाई गई थी. अंग्रेज अफसर और सैनिक शहर छोड़कर प्रयागराज जाने के लिए निकले थे. तभी अंग्रेज सैनिकों के कुछ सिपाहियों ने गोलीबारी शुरू कर दी. इससे वहां पर मौजूद हजारों की भीड़ उग्र हो गई. जिसमें 450 से ज्यादा अंग्रेज सैनिक मारे गए थे. इस घाट को घटना के बाद से मैस्कर घाट के नाम से भी जाना जाने लगा.
इस तरह का था कुछ माहौल
इतिहासकार बताते हैं कि उस समय नाना साहब की सेना ने अंग्रेजों से शहर को मुक्त करा लिया था. नाना साहेब के सेनापति अजीमुल्ला खान यहां के डीएम हो गए थे. उनके फरमान जारी होने लगे और उनके आदेशों पर शहर चलने लगा. अंग्रेजों ने अपने आप को असुरक्षित समझ कर शहर छोड़ने का निर्णय लिया और सतीचौरा घाट से प्रयागराज जाने के लिए नाव पर सवार हो गए. यह बात किसी तरीके से क्रांतिकारियों को पता लग गई और अंग्रेजों के नाव में बैठने के बाद क्रांतिकारियों का बिगुल बजा और नाविकों ने नाव छोड़ दी. जिसके बाद अंग्रेज डूबने लगे और अंग्रेजों की ओर से गोली चली.
इस कारण एक क्रांतिकारी को गोली लगी. जिसके बाद क्रांतिकारियों ने धावा बोलकर अंग्रेजों को बीच गंगा में मौत के घाट उतार दिया.
अंग्रेज महिलाओं को बीबीघर भेजा गया
इतिहासकार बताते हैं अंग्रेजों ने यहां पर भी समझौते पर विश्वासघात करते हुए पहले हमला किया. जिसकी बड़ी कीमत उनको चुकानी पड़ी. क्रांतिकारी अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतारने के बाद जब वह अंग्रेज महिलाओं की ओर बढ़े तो नाना राव पेशवा ने क्रांतिकारियों को रोक दिया और सभी अंग्रेज महिलाओं और बच्चों को सुरक्षित सवादा कोठी भेज दिया. देर रात में सभी महिलाओं और बच्चों को बीवी घर यानी नाना राव पार्क में रहने को भेज दिया. उनकी सुरक्षा के लिए नाना राव पेशवा ने हुसैनी बेगम नाम की महिला और 2-3 सुरक्षा गार्ड को लगाया.