बाबा अमरनाथ की गुफा श्रीनगर से 145 किलोमीटर दूर हिमालय की श्रेणियों में स्थित है। समुद्र तल से 3978 मीटर ऊंचाई पर स्थित गुफा 150 फीट ऊंची, 90 फीट लंबी है। यहाँ जाने के लिए सबसे पहले सोनमर्ग बालटाल या पहलगाम पहुंचना पड़ता है और वहां से फिर पैदल जाना होता है।
ऐसे होता है शिवलिंग का निर्माण
अमरनाथ गुफा में ऊपर से पानी की बूंदें टपकती हैं। यहीं पर गुफा के केंद्र में टपकने वाली बूंदों से 10 फीट लंबा शिवलिंग बनता है। सबसे बड़े आश्चर्य यह है कि यहां बनने वाला शिवलिंग ठोस बर्फ का होता है, जबकि दूसरी जगहों पर कच्ची बर्फ बनती है जो हाथ में लेने पर भुरभुरा जाती है। अमरेश्वर से कुछ दूरी पर उसी तरह के हिमखंड बनते हैं जिन्हें गणेश, भैरव और पार्वती का रूप माना जाता है।
इसके अलावा गुफा के सेंटर में पहले बर्फ का एक बुलबुला बनता है जो 15 दिन बढ़ता है और 2 फुट से अधिक ऊंचा हो जाता है और चंद्रमा के साथ घटते हुए विलुप्त हो जाता है। इसी के साथ शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है। चंद्रमा का संबंध शिवजी से माना जाता है। लेकिन यह रहस्य कोई नहीं सुलझा पाया कि इसका असर इसी हिमलिंग पर क्यों पड़ता है। जबकि यहां और भी गुफाएं हैं और वहां भी पानी टपकता है लेकिन वहां हिमलिंग नहीं बनता।.
भृगु ऋषि ने देखा था सबसे पहले ये जगह
धार्मिक ग्रंथों और महान ऋषि के अनुसार कश्मीर घाटी में प्राचीन काल में राजा दश, ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का निवास स्थान था। एक बार कश्मीर घाटी जलमग्न हो गई। कश्यप ऋषि ने इस जल को नदियों और छोटे-छोटे जलस्रोतों से बहाया। उसी समय भृगु ऋषि हिमालय यात्रा के दौरान वहां से गुजरे, उस समय जलस्तर कम हो गया था। इसी समय भृगु ऋषि ने हिमालय की पर्वत श्रृंखला में अमरनाथ की गुफा देखी, और बर्फ का शिवलिंग भी देखा। मान्यता है भगवान शिव ने यहां तपस्या की थी, इसलिए यह गुफा देवस्थान बन गई।
बाबा बर्फानी के दर्शन का महत्व
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार बाबा अमरनाथ के दर्शन का पुण्यफल, काशी में दर्शन से दस गुना, प्रयागराज में दर्शन से सौ गुना, नैमिषारण्य में हजार गुना मिलता है और जो कैलाश जाता है वह मोक्ष प्राप्त करता है। पुरातत्वविद अमरनाथ गुफा को पांच हजार साल पुराना मानते हैं, लेकिन इस पर कई सवाल भी हैं। तमाम लोगों का कहना है कि हिमालय के पहाड़ लाखों वर्ष पुराने है और किसी ने गुफा बनाई होगी तो यह हिमयुग में यानी 12-13 हजार साल पहले।
इसके अलावा यह भी मान्यता है कि यहां भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य सुनाया था और कई वर्ष यहां रहकर तपस्या की थी। यह अमरत्व का रहस्य तोता और दो कबूतरों ने भी सुन लिया था। बाद में तोता शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गया, जबकि कुछ श्रद्धालुओं को यहां आज भी कबूतरों का जोड़ा दिखाई देता है, जिसे अमर पक्षी माना जाता है।