आखिर क्यों साईबेरियन सारस पक्षी ने कई वर्षो से भारत आना बंद कर दिया - Punjab Kesari
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आखिर क्यों साईबेरियन सारस पक्षी ने कई वर्षो से भारत आना बंद कर दिया

सारस पक्षी को लेकर एक बार फिर नई जानकारी आई है। पक्षी विशेषज्ञ एवं पूर्व वन संरक्षक डा

सारस पक्षी को लेकर एक बार फिर नई जानकारी आई है। पक्षी विशेषज्ञ एवं पूर्व वन संरक्षक डा सतीश शर्मा के अनुसार संसार में क्रेनों की 15 प्रजातियां ज्ञात है जो तीन वशों एन्टीगोन, बालिएरिका तथा ग्रूस में सम्मिलित की गई हैं। बताया जा रहा है कि 15 प्रजातियों में कभी 5 भारत में मिलती थी लेकिन कई वर्षो से साइबेरिया क्षेत्र से सर्दियों में आने वाली साईबेरियन सारस ने आना बंद कर दिया और हमारे देशो में केवल 4 सारस या क्रेन प्रजातियां ज्ञात है। साईबेरियन सारस राजस्थान के केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान में आती थी लेकिन अब वे नहीं आ रही है।
सारस कब और कहां दिखतें हैं?
उन्होंने बताया कि जानी पहचानी सारस क्रेन जिसे वैज्ञानिक भाषा में ग्रूस एन्टीगोन कहते है, स्थानीय प्रजाति है तथा देश छोड कर नहीं जाती। काली गर्दन की सारस की संख्या जम्मू कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में गर्मी में तो उत्तर पूर्व भारत में सर्दी में पहुंचती है। कुरजां तथा कॉमन क्रेन हमारे यहां हिमालय के उस पार के सूदूर क्षेत्रों में सर्दी की ऋतु में देशान्तर गमन कर अक्टूबर के आस-पास आने लगती है तथा फरवरी मार्च में गर्मी प्रारंभ होने पर प्रवास समाप्त कर वापस लौट जाती है।
राजस्थान की जनता ने बताई बड़ी बात
कुरजां को राजस्थान का जन-जन जानता है। जोधपुर जिले का खीचन गांव कुरजां प्रवास के लिये न केवल देश बल्कि विदेशों में भी जाना जाता है। खीचन गांव के लोग बडे स्नेह व आत्मीयता से सदियों से कुरजां के प्रवास को सुरक्षित एवं यादगार बनाते आ रहे है। बताया जा रहा है कि खीचन में उनके रहने तक उनको भोजन के रुप में नियमित चुग्गा दिया जाता है। कुरजां के साथ कॉमन क्रेन को भी देखा जा सकता है। ये दोनो क्रेन बडे झूण्ड बनाकर रहने, उड़ने, खाना खाने एवं आराम करने की प्रवृति रखती है।
सारस की प्रवृति कैसी होती है ?
क्रेन या सारस जब उड़न भरती है तो यह अपनी गर्दन आगे एवं पैर पीछे की तरफ लम्बे फैलाकर उड़ते है। उड़न में पंक्ति या वी आकार में उड़ने से ये अपना ईंधन बचाती है। क्रेन अपना जोड़ बनाने के बाद वफादारी से स्थायी रिश्ते निभाते है। कहते है जोड़ में एक की मृत्यु होने पर दुसरा साथी खाना पीना छोड मृत्यु को गले लगा लेता है। इसी प्रवृति के कारण न केवल भारत में बल्कि दूसरे देशों में भी क्रेनों को आदर दिया जाता है।बताया जा रहा है कि हिमालय के उस पार बौध धर्म के अनुयायी भी क्रेनों का आदर करते है। हमारे धर्म ग्रंथों एवं लोक गीतों में सारस एवं कुरजा की बडी महिमा है।

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