आखिर कैसे सिर्फ 'लोहे के फेफड़े' संग जी रहा यह शख्‍स? खुद मुंह से लिखी आत्‍मकथा! - Punjab Kesari
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आखिर कैसे सिर्फ ‘लोहे के फेफड़े’ संग जी रहा यह शख्‍स? खुद मुंह से लिखी आत्‍मकथा!

अमेरिका के पॉल अलेक्जेंडर (Paul Alexander) दुनिया के पहले वो शख्‍स हैं, जिन्‍हें लोहे के फेफड़े (iron lung)

वैसे तो अंग प्रत्‍यारोपण की कहान‍ियां आपने बहुत सुनी होंगी लेकिन क्या असली में कभी किसी को लोहे के साथ जीते हुए देखा हैं? किसी का दिल बदल दिया जाता है तो किसी का लीवर। लेकिन क्‍या कभी सुना है कि किसी को ‘लोहे का फेफड़ा’ लगाया गया हो और उसके साथ वह इंसान अपना जीवन व्यतीत कर रहा हो। शायद नहीं, क्‍योंकि अमेरिका के पॉल अलेक्जेंडर (Paul Alexander) दुनिया के पहले वो शख्‍स हैं, 
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जिन्‍हें लोहे के फेफड़े के साथ जीना पड़ रहा है। पॉल को पोलियो की वजह से लकवा मार गया था और 1928 में उन्‍हें यह डिवाइस लगाई गई थी, तब से इसी के साथ वे जी रहे हैं। आप जानकर हैरान होंगे कि इन हालातों के बावजूद उन्‍होंने जिंदगी से कभी हार नहीं मानी। लकवे की बीमारी से ग्रसित हैं और अब उनकी उम्र 76 साल से ज्यादा है, लेकिन अभी भी उन्‍होंने जीने की उम्‍मीद नहीं छोड़ी. मुंह से ही कई किताबें लिख चुके हैं।
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गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक, ये बात 1952 की है, पॉल तब महज 6 साल के थे। जब वह अपने दोस्‍तों के साथ खेल रहे थे, तभी गर्दन में चोट लग गई। उन्‍हें डॉक्‍टर के पास ले जाया गया, क्‍योंकि दर्द काफी तेज होने लगा था। डॉक्‍टरों ने देखा तो पाया कि उनके फेफड़ों में जमाव हो रहा है, जिसकी वजह से वे सांस नहीं ले पा रहे थे। जिसके बाद शरीर में लकवा मार चुका था। एक तरह से सांसें थमती नजर आ रही थीं। ज़िन्दगी मौत के बीच झूल रही थी। तभी एक डॉक्‍टर ने सूझबूझ दिखाते हुए जल्दी से ट्रेकियोटॉमी की। इस प्रक्रिया में गर्दन में एक छेद किया जाता है ताकि एक ट्यूब को व्यक्ति की श्वासनली के अंदर रखा जा सके। 
70 साल से इसी मशीन के सहारे जिंदा हैं पॉल 

पॉल को लगभग पूरे तीन दिन के बाद होश आया। जब आंख खुली तो उन्‍होंने देखा कि वे एक लोहे की मशीन के अंदर हैं। इसमें मेडिकल की भाषा में आयरन लंग्‍स मशीन कहते हैं। यह मशीन लकवाग्रस्‍त मरीजों के लिए किसी वरदान से कम नहीं मानी जाती है। यह मरीज के फेफड़ों में ऑक्सीजन भरने का काम करती है ताकि वह शख्‍स जिंदा रह सके। हालांकि, हमेशा इस मशीन में कैद रहना आसान काम नहीं होता। मगर पॉल अलेक्‍जेंडर 70 साल से इसी मशीन के सहारे जिंदा हैं। उन्‍होंने कुल 18 महीने अस्‍पताल में बिताए। तब जाकर निकल पाए और आज भी वह इसी मशीन के अंदर कैद रहते हैं और ज़िन्दगी जी रहे हैं।
‘आप वास्तव में कुछ भी कर सकते हैं…’
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यह सब सुनकर आपको लग रहा होगा कि इससे तो मर जाना अच्‍छा है, लेकिन पॉल ने जिंदगी की डोर अभी भी थामे रखी है। उनके अंदर गजब का जुनून है। एक बार उन्‍होंने हायर स्‍टडीज करने के लिए सोचा। लेकिन यून‍िवर्सिटी ने उनकी हालत देखकर दाख‍िला बार-बार‍ रिजेक्‍ट कर दिया. तमाम कोशिशों के बावजूद आख‍िरकार डलास की एक यूनिवर्सिटी में उन्‍हें एडमिशन मिला और उन्‍होंने कानून की डिग्री भी ली। अब वह वकील हैं और कोर्ट के काम भी करते हैं। उन्‍होंने मुंह से ही अपनी आत्‍मकथा ‘My Life in an Iron Lung’ लिखी है। वे कहते हैं, कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहां से हैं या आपका अतीत क्या है, या आप किन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. आप वास्तव में कुछ भी कर सकते हैं। आपको बस इसके लिए अपना दिमाग लगाना है और कड़ी मेहनत करनी है।

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