एक ऐसा मंदिर जहां दर्शन करने पर महिलाएं हो जाती है सात जन्मों के लिए विधवा, जानिए क्या है श्रापित मंदिर का रहस्य - Punjab Kesari
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एक ऐसा मंदिर जहां दर्शन करने पर महिलाएं हो जाती है सात जन्मों के लिए विधवा, जानिए क्या है श्रापित मंदिर का रहस्य

ये मंदिर धर्मनगरी कुरुक्षेत्र से 20 किलोमीटर दूर पिहोवा में स्थित है। यहां सरस्वती तीर्थ पर भगवान शंकर

मंदिरों में भक्त भगवान की आराधना करते है और साथ ही सुख-समृद्धि की मनोकामना भी करते है, लेकिन क्या आपको पता है एक ऐसा भी मंदिर असल में है जो महिलाओं के लिए श्रापित है। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन ऐसा एक मंदिर भारत में मौजूद है, जहां पर पूजारी भी महिलाओं को जाने के लिए पहले ही मना कर देते है। जानिए क्या है इस श्रापित मंदिर का रहस्य जो महिलाओं को विधवा बना देता है।
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सात जन्मों तक रहती हैं महिलाएं विधवा 
बता दें, ये मंदिर धर्मनगरी कुरुक्षेत्र से 20 किलोमीटर दूर पिहोवा में स्थित है। यहां सरस्वती तीर्थ पर भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय का मंदिर हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान कार्तिकेय की पिंडी है। मान्यता है कि महिलाओं को इस पिंडी के दर्शन नहीं करनी चाहिए। यदि महिलाएं इस मंदिर में दर्शन करती हैं तो वो सात जन्मों तक विधवा रहती है। मालूम हो, इस मान्यता का जिक्र करते हुए मंदिर के बाहर बकायदा एक बोर्ड भी लगाया गया है।
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महिलाओं समेत बच्चियों पर भी पाबंदी
भगवान कार्तिकेय की पिंडी के दर्शन करने के लिए महिलाओं के मंदिर में प्रवेश से पहले स्थानीय मंहत भी उन्हें विधवा होने की मान्यता के बारे में जानकारी देते हैं। यहां महिलाओं को हिदायत दी जाती है कि वह गर्भगृह के अंदर जाए बगैर बाहर से ही कार्तिकेय महाराज का आशीर्वाद लें। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन यह नियम केवल महिलाओं पर लागू नहीं है, बल्कि छोटी और नवजात बच्चियों को भी गर्भगृह में प्रवेश नहीं करने का नियम है।
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पिंडी पर चढ़ता है सरसों का तेल
कुरुक्षेत्र से 20 किलोमीटर दूर पिहोवा में मौजूद कार्तिकेय महाराज मंदिर में पिंडी रूप में विराजित हैं। वहीं उनकी पिंडी पर सरसों का तेल चढ़ाने की परंपरा है। दरअसल, मान्यता है कि कार्तिकेय ने मां पार्वती से क्रोधित होकर अपने अपने शरीर का मांस और रक्त अग्नि को समर्पित कर दिया था। जिसके बाद भगवान शंकर ने उन्हें पिहोवा तीर्थ पर जाने के लिए कहा था। साथ ही यह भी मान्यता है कि कार्तिकेय के गर्म शरीर को शीतलता देने के लिए ऋषि-मुनियों ने सरसों का तेल उन पर चढ़ाया था। शीतल होने पर कार्तिकेय पिहोवा तीर्थ पर ही पिंडी के रूप में विराजित हो गए थे।

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