6-7 चूल्हों पर बनता है खाना, एक दिन में लगता है 10 लीटर दूध, 72 लोगों का परिवार है लोगों के लिए मिसाल - Punjab Kesari
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6-7 चूल्हों पर बनता है खाना, एक दिन में लगता है 10 लीटर दूध, 72 लोगों का परिवार है लोगों के लिए मिसाल

आज के दौर में एक परिवार ऐसा भी है जिसमें एक साथ 72 सदस्य रहते हैं. सोलापुर में

एक दौर था जब लोग जॉइंट फैमिली में रहना पसंद करते थे। फैमली हर शख्स एक-दूसरे के सुख-दुख का साथी हुआ करना था। मुश्किल टाइम में पूरी फैमली एक-दूसरे साथ खड़ी रहती थी। मगर आज के दौर में लोग अकेले अपनी नई जिंदगी बसाना पसंद करते हैं। मगर आज हम आपको एक ऐसे परिवार के बारे में बताने वाले है जिसमें कुल 72 लोग है और सब एक-साथ मिलकर रहते हैं।
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इस परिवार में दादी-दादा, चाची-चाचा, बच्चे सब एक साथ एक घर में रहते हैं। ये परिवार महाराष्ट्र के सोलापुर में रहता है। आज के दौर में जहां लोग अपने मां-बाप के साथ रहने को अपनी बेइज्जती समझते है। वहां ये परिवार एक मिसाल है। इस परिवार में 1 दिन में 1200 रुपये तक की सब्जियां लग जाती हैं। तो वहीं एक दिन में 10 लीटर दूध लगता है। 
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एक परिवार के लिए खाना बनाने के लिए भी यहां 6 से 7 चूल्हों को एक साथ जलना पड़ता है। इस परिवार में चार पीढ़िया एक साथ रहती हैं। ये लोग मूल रुप से कर्नाटक रहने वाले हैं और 100 साल पहले दो ही जोड़े परिवार सोलापुर में आकर बसा था। मगर धीरे धीरे संख्या बढ़ती रही और आज इस परिवार में 72 सदस्य हैं और वो सभी एक साथ 1 ही घर में रहते हैं।
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अब जितनी बड़ी फैमली राशन-पानी भी उसी हिसाब से लगता है। परिवार के लोगों के मुताबिक, यहां 1 दिन में 10 लीटर से ज्यादा दूध खर्च हो जाता है तो वहीं 1000 से ₹1200 तक की तो सब्जियां ही आ जाती है और जब खाना बनाने की बारी आती है तो एक ही किचन में 6 से 7 चूल्हों को जलना पड़ता है, तब जाकर पूरे परिवार के लिए एक वक्त का खाना बन पाता है। इनकी फैमली फोटो भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुई थी।
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इतने बड़े परिवार को संभालना दूसरे घर से आई बहुओं के लिए काफी मुश्किल भरा रहा होगा। परिवार की बहुएं बताती हैं कि शुरुआत में उन्हें यहां ढलने में काफी वक्त लगा था लेकिन सास, दादी और ननदों ने मिलकर ऐसी हेल्प की कि सब कुछ जल्दी ही सहज हो गया। दोईजोडे परिवार कई तरीके का व्यापार करता है टोपियाँ, कंबल, और भी कई दुकानें हैं। इस परिवार की खास बात ये है कि यहां के बच्चों को खेलने कूदने या पढ़ाई लिखाई के लिए कभी किसी दूसरे पर निर्भर नहीं रहना पड़ा।

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