इंडिया या भारत! की लड़ाई में कैसे फंस गयी सपा? न कर रही है समर्थन और न विरोध - Punjab Kesari
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इंडिया या भारत! की लड़ाई में कैसे फंस गयी सपा? न कर रही है समर्थन और न विरोध

मणिपुर हिंसा के बाद अब देश में एक और राजनीतिक लड़ाई हिंसक लड़ाई में बदल रही है जी

मणिपुर हिंसा के बाद अब देश में एक और राजनीतिक लड़ाई हिंसक लड़ाई में बदल रही है जी हां हम बात कर रहे हैं देश का नाम भारत होना चाहिए या इंडिया इस विवाद की। जिसको लेकर इन दोनों सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के बीच जबरदस्त जंग छिड़ी हुई है जहां बीजेपी इंडिया को गुलामी का प्रतीक बता रही है तो वहीं विपक्ष दलों का कहना है कि मोदी सरकार विपक्ष के इंडिया गठबंधन से डर गई है। दोनों ही और इस मुद्दे को लेकर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का खेल खेला जा रहा है। लेकिन इस वक्त एक ऐसी पार्टी है जो ना ही समर्थन कर रही है और ना ही विरोध जी हां हम बात कर रहे हैं समाजवादी पार्टी की। इस वक्त विपक्षी दलों में से एक समाजवादी पार्टी के लिए इसका जवाब देना मुश्किल हो रहा है की वह भारत बनाम इंडिया की लड़ाई में किस तरह सहयोग दें? 

मोदी सरकार पर विपक्ष का हमला

भारत और इंडिया के शुरुआत में सपा बुरी तरह फस गई है दरअसल यह विवाद तब से शुरू हुआ जब जी-20 देश के राष्ट्रपति की ओर से नियंत्रण पत्र भेजा गया था। जहां इस पत्र में प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की जगह प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा हुआ था इसके बाद से ही कांग्रेस पर लगातार सवाल उठा रही है और वह कह रही है क्या मोदी सरकार देश का नाम बदलने जा रही है। साथी विपक्षी गठबंधन इंडिया का यह भी कहना है की मोदी सरकार इन मुद्दों को लेकर देश की आम जनता को भटका रही है। इंडिया गठबंधन के दल इस विवाद को लेकर केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साथ रहे उनका कहना है कि जब से गठबंधन का नाम इंडिया रखा है तब से मोदी सरकार इस नाम से ही नफरत करने लगी है। 

कैसे फंसे अखिलेश यादव?

इस पूरे विवाद में समाजवादी पार्टी पूरी तरह से फस गई है क्योंकि देश का नाम भारत करने की मांग सबसे पहले सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने ही की थी जी हां साल 2004 में जो मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने यह प्रस्ताव दिया था उन्होंने कहा था कि संविधान में जो ‘इंडिया डेट इज भारत’ जो लिखा है उसे ‘ भारत डेट इज इंडिया’ रख दिया जाए। हालांकि यह प्रस्ताव विधानसभा में पास हो गया था लेकिन मुलायम सिंह यादव देश का नाम नहीं बदल पाए क्योंकि वह उसे वक्त प्रधानमंत्री नहीं थे। और यही कारण है कि सपा की मुश्किलें बढ़ चुकी है क्योंकि वह इस गठबंधन के हिस्सेदारी में है जो इस कथन का विरोध करने पर लगी है। अब ना अखिलेश यादव समर्थन कर पा रहे हैं और ना ही विरोध कर पा रहे हैं।

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