मथुरा में बोले दलाई लामा-धार्मिक सद्भाव के लिए अहिंसा, प्रेम, करुणा और सहिष्णुता का प्रचार जरूरी - Punjab Kesari
Girl in a jacket

मथुरा में बोले दलाई लामा-धार्मिक सद्भाव के लिए अहिंसा, प्रेम, करुणा और सहिष्णुता का प्रचार जरूरी

अपने स्वागत से अभिभूत दलाई लामा ने कहा, ‘यह आश्रम हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति एवं संस्कृत भाषा को

दुनिया में तेजी से बढ़ रही हिंसा पर दुख जताते हुए हुए तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा है कि ऐसे समय में अहिंसा, प्रेम, करुणा और सहिष्णुता का प्रचार करना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है ताकि लोगों के बीच धार्मिक सद्भाव बना रहे। धर्म गुरू ने कहा कि आज के दौर में हर तरफ हिंसा और हथियारों का बोलबाला है तथा सब एक-दूसरे को मारने-काटने में लगे हुए हैं। 
दलाई लामा आज उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के महावन क्षेत्र में यमुना किनारे स्थित श्री उदासीन कार्ष्णि आश्रम में गुरुकुल के वेदपाल बालकों तथा आश्रम के अनुयायियों को सम्बोधित कर रहे थे। इस मौके पर रमणरेती आश्रम के महामण्डलेश्वर कार्ष्णि स्वामी गुरुशरणानन्द भी मौके पर मौजूद थे। 

राज बब्बर बोले-अन्य विपक्षी पार्टियां डरी हुई हैं केवल कांग्रेस ही बीजेपी को टक्कर दे सकती है

84 वर्षीय दलाई लामा जब आश्रम में पहुंचे तो वहां उपस्थित गुरुकुल के सैकड़ों वेदपाठी बालकों ने संस्कृत भाषा के श्लोकों व मंत्रों के बीच उनका विधि-विधान पूर्वक स्वागत किया। अपने स्वागत से अभिभूत दलाई लामा ने कहा, ‘यह आश्रम हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति एवं संस्कृत भाषा को जीवंत रखकर अत्यधिक महत्वपूर्ण काम रहा है जिसके लिए यह प्रशंसा का पात्र है।’
तिब्बती धर्म गुरू ने कहा, ‘ भारत की संस्कृत भाषा दुनिया की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है, जिसमें भारतीय ही नहीं, जैन और बौद्ध धर्मों के भी साहित्य की रचना की गई है। बुद्धिज्म के नालंदा परम्परा से जुड़े बहुत से ग्रंथों की रचना पाली के साथ- साथ संस्कृत में की गई है। यही स्थिति जैन साहित्य की भी है।’ 
संस्कृत से अत्यधिक प्रभावित तिब्बती संत ने कहा, ‘मुझे भी यह भाषा बहुत प्यारी लगती है। बचपन में मेरे गुरु ने भी मुझे यह भाषा सिखाने का प्रयास किया था, लेकिन दुर्भाग्य से मैं यह भाषा नहीं सीख पाया। मेरे लिए यह भाषा बहुत जटिल थी।’ 
धर्मगुरू ने कहा, ‘इसी भाषा में वर्णित भारतीय संस्कृति ने हमें करुणा, प्रेम, अहिंसा, सहिष्णुता और धार्मिक सद्भाव जैसे संदेश दिए हैं। जिन्हें बनाए रखना भारत के लिए ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए जरूरी है। भारत में जिस प्रकार भिन्न-भिन्न धर्मों और विचारधारा को मानने वाले लोग एकसाथ धार्मिक सद्भाव बनाकर रहते हैं, वैसा उदाहरण पूरी दुनिया में कहीं भी देखने को नहीं मिलता। इसलिए दुनिया का साथ अरब से भी अधिक आबादी को सद्भाव के साथ जीने के लिए इस परम्परा को जीवंत रखने की जरूरत है।’ 
उन्होंने कहा कि बौद्ध दर्शन एवं भारतीय परम्परा के अनुसार जिन पांच महत्वपूर्ण विषयों (यथा – भाषा, चिकित्सा विज्ञान, शल्य चिकित्सा मनोविज्ञान व बौद्ध दर्शन की शिक्षा उस काल में अनिवार्य रूप से दी जाती थी, वह सब ग्यान की संस्कृत भाषा में ही रचना की गई थी। यह एक अत्यंत प्राचीन, गंभीर भारतीय भाषा है। इस भाषा को बनाए रखने के लिए भारतीय प्रशंसा के पात्र हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।