राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सत्ता में आने के बाद आदिवासियों ने एक बार फिर अपने लिए अलग धर्म कोड की मांग तेज कर दी है। आदिवासी वर्षों से ‘सरना धर्म कोड’ लागू करने की मांग कर रहे हैं। झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार ने ‘सरना आदिवासी धर्म कोड’ विधेयक भी पारित किया, लेकिन यह मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास अटका हुआ है। आदिवासियों का एक बड़ा वर्ग है, जो खुद को हिंदू नहीं मानता। इनमें झारखंड में आदिवासियों की आबादी सबसे ज्यादा है। ये आदिवासी खुद को ‘सरना धर्म’ बताते हैं।
संविधान में अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासियों को ‘हिंदू’ माना गया है। लेकिन कई कानून ऐसे हैं जो उन पर लागू नहीं होते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, और हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 की धारा 2 (2) और हिंदू वयस्कता और संरक्षकता अधिनियम 1956 की धारा 3 (2) अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होती है।
मतलब इसका अर्थ यह हुआ कि बहुविवाह, विवाह, तलाक, गोद लेना, भरण-पोषण, उत्तराधिकार जैसे सभी प्रावधान अनुसूचित जनजाति के लोगों पर लागू नहीं होते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि विवाह, तलाक और उत्तराधिकार को लेकर सैकड़ों जनजातियों और उप-जनजातियों के अपने-अपने रीति-रिवाज और परंपराएं हैं।
2001 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाया कि अनुसूचित जनजाति के लोग हिंदू धर्म का पालन करते हैं, लेकिन वे हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 2 (2) के दायरे से बाहर हैं। इसलिए उन्हें आईपीसी की धारा 494 (बहुविवाह) के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसके तहत 2005 में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जनजाति के लोग अपने समुदाय के रीति-रिवाजों के अनुसार शादी कर सकते हैं।
तो क्या आदिवासी हिंदू नहीं हैं?
आदिवासी खुद को हिंदू नहीं मानते। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी आदिवासी खुद को हिंदू नहीं मानते हैं। एक बड़ा तबका है जो खुद को हिंदू नहीं ‘सरना’ मानता है। सरना का अर्थ है प्रकृति की पूजा करने वाले लोग। झारखंड में सरना धर्म को मानने वालों की बड़ी संख्या है। ये लोग खुद को प्रकृति के पुजारी कहते हैं। वे किसी देवता या मूर्ति की पूजा नहीं करते हैं।
जो स्वयं को सरना धर्म का मानते हैं वे तीन प्रकार की पूजा करते हैं। पहले धर्मेश का अर्थ है पिता, दूसरा सरना का अर्थ है माता और तीसरी प्रकृति का अर्थ है वन। सरना धर्म के अनुयायी ‘सरहुल’ पर्व मनाते हैं। इसी दिन से उनका नया साल शुरू होता है। सरना धर्म के अनुयायी खुद को हिंदुओं से अलग बताते हैं। पिछले साल फरवरी में एक सम्मेलन में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा था, “आदिवासी कभी हिंदू नहीं थे, न ही हैं। इसमें कोई भ्रम नहीं है। हमारा सब कुछ अलग है। हम प्रकृति की पूजा करते हैं।
यह सरना धर्म कोड क्या है?
यह सरना धर्म कोड क्या है? इसे जनगणना रजिस्टर में धर्म के स्तंभ के रूप में सोचें। इस कॉलम में विभिन्न धर्मों के अलग-अलग कोड हैं। जैसे हिंदू धर्म का 1, मुस्लिम का 2, ईसाई धर्म का 3. सरना धर्म के लिए अलग कोड की मांग की जा रही है।अगर केंद्र सरकार सरना धर्म के लिए अलग कोड की मांग मानती है तो ‘सरना’ भी हिंदू, मुस्लिम की तरह अलग धर्म बन जाएगा।
झारखंड के आदिवासी वर्षों से अपने लिए अलग से ‘सरना धर्म कोड’ लागू करने की मांग कर रहे हैं। आदिवासियों की ये मांग 80 के दशक से चली आ रही है। 2019 में झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार आने के बाद से ये मांग और तेज हो गई। सोरेन सरकार ने ‘सरना धर्म कोड बिल’ पास किया था। ये बिल अभी केंद्र सरकार के पास मंजूरी के लिए अटका है।
एक महीने पहले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर कहा था कि हमने सरना धर्म कोड बिल पास कर दिया है, लेकिन केंद्र सरकार ऐसा नहीं कर रही है। पिछले साल झारखंड सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि 1931 में राज्य में आदिवासी आबादी 38.3% थी, जो 2011 में घटकर 26% रह गई। इसका एक कारण यह भी है कि लोग काम के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं और वहाँ वे आदिवासियों में नहीं गिने जाते। इसलिए, यदि उन्हें एक अलग कोड मिलता है, तो पूरी आबादी की गणना की जा सकती है।
लेकिन एक अलग धर्म की आवश्यकता क्यों है?
पहली जनगणना 1871 में ब्रिटिश भारत में हुई थी। तब आदिवासियों के लिए एक अलग धर्म संहिता प्रणाली थी। यह व्यवस्था 1941 तक लागू रही। लेकिन आजादी के बाद 1951 में जब पहली जनगणना हुई तो जनजातियों को अनुसूचित जनजाति यानी ST यानी अनुसूचित जनजाति कहा जाने लगा। और जनगणना में ‘अन्य’ के नाम पर धर्म की श्रेणी बना दी गई।
2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में अनुसूचित जनजातियों की आबादी 10.45 करोड़ से ज्यादा है। इनमें से 86.45 लाख आबादी झारखंड में है। झारखंड की 26 फीसदी से ज्यादा आबादी आदिवासी है। 2011 की जनगणना में 79 लाख से ज्यादा लोग ऐसे थे, जिन्होंने धर्म के कॉलम में ‘अन्य’ भरा था, लेकिन साढ़े 49 लाख से ज्यादा लोग ऐसे थे जिन्होंने अन्य की बजाय ‘सरना’ लिखा था और इन 49 लाख में से 42 लाख झारखंड के थे। सरना धर्म के लिए अलग से कोड की मांग करने वालों का तर्क है कि जब 45 लाख की आबादी वाले जैन धर्म के लिए अलग से कोड होता है, तो फिर 49 लाख लोगों ने सरना को धर्म चुना, तो फिर अलग धर्म मानने में क्या दिक्कत है?
झारखंड विधानसभा में ‘सरना आदिवासी धर्म संहिता विधेयक’ पारित होने पर सोरेन सरकार ने कहा था कि वह आदिवासियों को पहचान देगी और उनकी संस्कृति और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करेगी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी सरना समुदाय से आते हैं।