26 जुलाई 1999 ये वो तारीख है जिस दिन भारत के जवानों ने पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए इतिहास बनाया था जिसकी हमेशा चर्चा होती है। हमारे देश के जवानों ने उनकी साजिशों को नाकाम किया था। इस युद्ध को लेकर कई लोगों के मन में सवाल जरुर रहता होगा कि इस युद्द की इतनी चर्चा क्यों होती है। दरअसल ये युद्द 85 दिन तक चला था। इस युद्द में 500 से ज्यादा भारत के जवान शहीद हुए थे। आज करगिल की जंग के 24 साल पूरे हो गए हैं।
पाकिस्तान के बीच हुआ था युद्ध
इस ऑपरेशन की बात करें तो इसकी शुरुआत तब हुई जब पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों ने नियंत्रण रेखा को पार करते हुए भारत में घुसपैठ शुरू की। करगिल के पहाड़ी इलाके से भारत में हमला करने की योजना बनाई।
पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा को किया था पार
घुसपैठ की शुरुआत 3 मई को हुई और जंग 26 जुलाई को खत्म हुई। 85 दिनों तक दोनों देश आमने-सामने रहे और 60 दिनों तक सीधेतौर पर ये जंग चली थी । 3 मई 1999 की वो तारीख जब करगिल की पहाड़ी पर एक चारवाहे ने पाकिस्तान के सैनिकों को आतंकियों को पहली बार देखा था उसने भारतीय सेना के अधिकारियों को इसकी जानकारी दी।
भारतीय सेना हुई थी अलर्ट
5 मई को घुसपैठ की खबर के बाद भारतीय सेना अलर्ट हुई और दुश्मनों को जवाब देने के लिए भारतीय सेना के जवानों को उस जगह भेजा गया जहां से घुसपैठ हुई थी दोनों देशों के सैनिकों का आमना-सामना हुआ और 5 भारतीय जवान शहीद हो गए। 9 मई को करगिल पहाड़ी में अंदर की तरफ पाकिस्तानी सैनिक पहुंचे और भारतीय सैनिकों के गोला-बारूद के ठिकाने को निशाना बनाया और गोलीबारी शुरू कर दी।
भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय का ऐलान कर
इसके बाद 10 मई को गोलाबारी के बाद पाकिस्तानी जवानों ने एलओसी को पार किया। द्रास और काकसर सेक्टर को पार करते हुए जम्मू-कश्मीर के कई हिस्सों में पहुंच गए। इसी दिन भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय का ऐलान कर दिया और कश्मीर से सैनिकों को करगिल भेजा गया।
भारतीय वायुसेना ने भी कमान संभाली
26 मई को भारतीय वायुसेना ने भी कमान संभाली। पाकिस्तानी सैनिकों के हमले के जवाब में कार्रवाई करनी शुरू की। इस कार्रवाई में कई पाकिस्तानी घुसपैठियों का सफाया किया गया।
पाकिस्तान को युद्ध को लिए जिम्मेदार ठहाराया था
1 जून को पाकिस्तान ने हमले किए और नेशनल हाइवे-1 को अपना निशाना बनाते हुए हमला किया। यह वो समय था जब दुनिया के देश भारत के साथ थे और पाकिस्तान की आलोचना कर रहे थे। फ्रांस और अमेरिका ने हमलों के लिए सीधे तौर पर पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया। 5 जून को भारत सरकार ने कई ऐसे डॉक्यूमेंट जारी किए जो हमले में पाकिस्तानी सेना का हाथ होने का खुलासा कर रहे थे।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पहुंचे थे कारगिल
13 जून को भारतीय सैनिकों ने टोलोलिंग चोटी पर कब्जा किया तो यह पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका था। इस दौरान देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी खुद करगिल पहुंचे। फिर 20 जून को भारतीया सेन ने एक के बाद एक टाइगर हिल के पास के कई ठिकानों पर वापस कब्जा कर लिया और पाकिस्तानी सैनिकों को करारा जवाब दिया। यह दिन भारतीय सेना के लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि जवानों ने टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया था। 5 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव बढ़ने और पाक सैनिकों को मिल रही लगातार हार के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने करगिल से सेना के वापस लौटने की घोषणा की।
भारत के 500 से ज्याद जवान हुए थे शहीद
भारतीय जवानों ने पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे हटने के लिए मजबूर किया और यह वो मौका था जब वो हार मानने लगे थे। फिर 14 जुलाई को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारतीय सेनाऑपरेशन विजय को सफलतापूर्वक पूरा होने की घोषणा कर दी । इसके बाद ही 26 जुलाई को पाकिस्तानी सेना के कब्जे में रहे सभी हिस्सों को भारतीय सेना ने वापस हासिल किया और करगिल की जंग का अंत किया । इस जंग में 3 हजार से अधिक पाकिस्तानी जवान घायल हुए थे और 500 से अधिक भारतीय जवान शहीद हुए थे। तो आप जिस कारगिल युद्द का नाम लेते है इसका अपना एक गहरा इतिहास है। जिसको समय समय पर याद किया जाता है।