दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों की खतना प्रथा को सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा के लिए एक मानसिक और भावनात्मक घाव बताया है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि यह प्रथा महिलाओं के सम्मान और अधिकारों के खिलाफ है, जो उन्हें संविधान से मिला है। सोमवार को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की बेंच ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि लंबे समय से चली आ रही किसी धार्मिक प्रथा को संवैधानिक मान लिया जाए। आप इस तरह से प्रथा के नाम पर किसी भी शख्स को जख्म नहीं दे सकते।
पतियों के लिए जवान लड़कियों पर ऐसी प्रथा नहीं थोपी जा सकती है। इस तरह का खतना प्रथा छोटी बच्चियों के लिए जीवनभर का घाव हो जाता है।’ इससे पहले 30 जुलाई को खतने के विरोध में दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं का खतना सिर्फ इसलिए नहीं किया जा सकता कि उन्हें शादी करनी है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि महिलाओं का जीवन केवल शादी और पति के लिए नहीं होता। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट से महिलाओं का खतना प्रथा किए जाने पर भारत में पूरी तरह से बैन लगाने की मांग की गई है। कोर्ट ने प्रथा पर सवाल उठाते हुए ये भी कहा कि ये प्रचलन महिलाओं की गरिमा को चोट पहुंचाता है। पति को खुश करने के लिए महिला ऐसा करे तो क्या इससे पुरुष वर्चस्व नहीं झलकता?