नई दिल्ली : राफेल डील विवाद को लेकर पुरे देश में राजनिति जोरो से गरमा रही है। संसद और सुप्रीम कोर्ट तक हंगामा मचा हुआ है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने विपक्ष मोदी सरकार पर इस डील में भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे। लेकिन फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने समाचार एजेंसी ANI को दिए गए इंटरव्यू में इस डील पर उठ रहे हर एक सवाल का जवाब दिया. इस इंटरव्यू में उन्होंने राहुल गांधी द्वारा लगाए गए हर आरोप को झूठा करार दिया। उन्होंने कहा कि वह भारत के साथ काम कर रहे हैं, किसी एक पार्टी के लिए नहीं।
उन्होंने कहा कि हमारा कांग्रेस पार्टी के साथ लंबा अनुभव है। हमारी पहली डील साल 1953 में नेहरू के साथ हुई थी। हम भारतीय वायुसेना और भारत सरकार को फाइटर्स जैसे प्रोडक्ट्स की आपूर्ति कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने खुद अंबानी को चुना। हमारे रिलायंस के अलावा 30 अन्य पार्टनर्स भी हैं। इस सौदे का भारतीय वायुसेना इसलिए समर्थन कर रही है क्योंकि उन्हें खुद की रक्षा के लिए फाइटर्स जेट्स की आवश्यकता है। न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार, राफेल के कीमत को लेकर सीईओ ने कहा कि वर्तमान विमान 9% सस्ते हैं। 36 विमानों की कीमत उतनी ही है जितनी 18 विमानों की थी। 18 से 36 दोगुना है। ऐसे में यह कीमत दोगुनी हो जानी चाहिए थी। लेकिन यह सरकार से सरकार के बीच का सौदा है तो हमें 9 फीसदी तक कीमतें कम करनी पड़ी। एरिक ने कहा कि पहले टाटा और अन्य कंपनियों से भी टाईअप के लिए बातचीत हुई थी। साल 2011 में टाटा भी कई अन्य विमान कंपनियों से बातचीत में थी।
लेकिन आखिरकार रिलायंस की इंजीनियरिंग सुविधाएं को देखते हुए हम उनके साथ गए। वहीं, राफेल विमान के बारे में डसॉल्ट के सीईओ ने कहा कि वर्तमान विमानों में सभी जरूरी चीजें मौजूद हैं बस हथियारों और मिसाइलों को छोड़कर। एक दूसरे कॉन्ट्रैक्ट में हथियार दिए जाएंगे। लेकिन हथियारों के बिना सभी चीजों से लैस राफेल विमान डसॉल्ट देगा। इससे पहले सोमवार को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक 36 राफेल विमानों की खरीद के संबंध में किये गए फैसले के ब्योरे वाले दस्तावेज याचिकाकर्ताओं को सौंप दिए। पीटीआई की खबर के मुताबिक दस्तावेजों के अनुसार राफेल विमानों की खरीद में रक्षा खरीद प्रक्रिया-2013 में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया गया है। विमान के लिये रक्षा खरीद परिषद की मंजूरी ली गई और भारतीय दल ने फ्रांसीसी पक्ष के साथ बातचीत की। पीटीआई के मुताबिक, दस्तावेजों में कहा गया है कि फ्रांसीसी पक्ष के साथ बातचीत तकरीबन एक साल चली और समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति की मंजूरी ली गई।