सुप्रीम कोर्ट आज आपराधिक मामलों में दोषी करार दिए गए नेता आगे चुनाव लड़ पाएंगे या नहीं इसे लेकर फैसला सुनाने वाला है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामला गंभीर है। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की अर्जी में कहा गया है कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा-8 (3) के मुताबिक अगर किसी को दो साल से ज्यादा सजा होती है तो वह सजा काटने के बाद 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता। इस मामले को लेकर चीफ जस्टिस रंजन गोगई की अध्यक्षता वाली पीठ ने बीजेपी नेता व याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से कहा कि वह पूर्व में दाखिल अपनी याचिका की मुख्य मांग से न भटकें।
याचिका में कहा गया है कि जैसे ही नेता को आपराधिक मामले में दोषी करार दिया जाता है उसे उम्रभर के लिए चुनाव लड़ने पर बैन किया जाना चाहिए। सरकारी अधिकारी को सजा होने के बाद उम्रभर के लिए नौकरी खत्म हो जाती है तो फिर नेताओं को ज्यादा तरजीह क्यों दी जाए? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामला गंभीर है वह 4 दिसंबर को सुनवाई करेगा। इस सुनवाई के दौरान पीठ इस मसले पर विचार करने का निर्णय लेने से पहले यह जानना चाहता था कि सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का क्या हुआ जिसमें दागी नेताओं के खिलाफ दर्ज मुकदमों का निपटारा एक वर्ष में पूरा करने का निर्देश दिया गया था।
पीठ ने अब इस मसले को गंभीर बताते हुए इस पर विचार करने का निर्णय लिया है। वहीं सुनवाई के दौरान अमिक्स क्यूरी विजय हंसारिया ने कहा कि दागी सांसद व विधायकों केखिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमे से निपटने के लिए स्पेशल कोर्ट बनाने से बेहतर यह होगा कि हर जिले में एक सत्र न्यायालय और एक मजिस्ट्रेट कोर्ट को विशेष तौर ऐसे मामलों के निपटारे लिए सूचीबद्ध कर दिया जाए। जिससे कि निर्धारित समय के भीतर मुकदमे का निपटारा संभव हो सके।
दागी सांसद व विधायकों केखिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमे से निपटने के लिए 70 स्पेशल कोर्ट बनाने की जरूरत है। इस पर केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार का ऐसा मानना है कि जहां 65 से कम मुकदमे दर्ज हैं वहां किसी नियमित कोर्ट को ऐसे मुकदमों का निपटारा करने की जिम्मेदारी दे दी जानी चाहिए। याचिका में एडीआर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि सांसद व विधायकों के खिलाफ 13680 आपराधिक मुकदमे लंबित हैं।