मणिपुर मुद्दे को लेकर जितना देश घबराया हुआ है, उतना ही संसद में विपक्ष हंगामा कर रहा है। मॉनसून सत्र की शुरुआत 20 जुलाई को हुई थी, और आज इस सत्र का पांचवा दिन है। लेकिन सत्ता की पक्ष-विपक्ष के इस विरोध में रोक लगने के बजाय ये और ज़्यादा ही गति पकड़ रहा है। मणिपुर में हो रही हिंसा को लेकर विपक्ष में कांग्रेस और बीआरएस ने सरकार के खिलाफ एक अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था। जो की आज लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला ने स्वीकार कर इसपर बहस करने की इजाज़त दे दी है। वहीँ संसद में हो रही कार्यवाही को 2 बजे तक स्थगित कर दिया गया है। चलिए जानते हैं की अविश्वास प्रस्ताव में ऐसा है क्या की विपक्ष इसपर लगातार बहस करने की मांग कर रहा था।
अविश्वास प्रस्ताव क्या है?
अविश्वास प्रस्ताव तब लाया जाता है जब मौजूद सरकार सदन से विश्वास खो चुकी होती है। अगर हम कानूनी तौर पर बात करें तो ये प्रस्ताव लोकसभा के लिए काफी अहम माना जाता है, बता दें की इसके ऊपर आर्टिकल 75 में लिखा हुआ है की “जिसमें केंद्रीय मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह होती है । जहां अगर सदन में पूरी बहुमत नहीं होती है तो प्रधानमंत्री के साथ-साथ पुरे मंत्री परिषद् को इस्तीफा देना होता है। अविश्वास प्रस्ताव के लिए 50 से ज़्यादा सांसदों का बहुमत होना चाहिए, वरना स्पीकर इसकी इजाज़त नहीं देता है।
कितने अविश्वास प्रस्ताव आ चुके हैं?
सत्ता का ये खेल इतना पुराण है की सदन में करीब 27 बार अविश्वास प्रस्ताव आए चुका है। पहला अविश्वास प्रस्ताव 1963 में लाया गया था। जिसमें समाजवादी नेता आचार्य कृपलानी भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ प्रस्ताव लेकर आये थे, जो की 347 वोटों से गिर गया। और फिर पंडित नेहरू की सरकार बरकरार रही। बता दें की साल 2018 में विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ ही अविश्वास प्रस्ताव लेकर आयी थी, जो की पूरी तरह से फ़ैल हो चुकी थी, क्योंकि इसके खिलाफ 325 सांसदों ने वोट दिया था।