नोटबंदी की वजह से हुई मौतों पर कोई आधिकारिक रिपोर्ट नहीं - सरकार - Punjab Kesari
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नोटबंदी की वजह से हुई मौतों पर कोई आधिकारिक रिपोर्ट नहीं – सरकार

केंद्र सरकार ने मंगलवार को राज्यसभा में बताया कि नोटबंदी के परिणामस्वरूप मरने वालों की संख्या के बारे

केंद्र सरकार ने मंगलवार को राज्यसभा में बताया कि नोटबंदी के परिणामस्वरूप मरने वालों की संख्या के बारे में उसे कोई सरकारी रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है। तृणमूल कांग्रेस के सदस्य अबीर रंजन बिश्वास ने सरकार से नोटबंदी के परिणामस्वरूप मरने वालों की संख्या की जानकारी मांगी थी। उन्होंने सवाल इस संबंध में सरकार से ब्योरा मांगा था और साथ ही यह भी पूछा था कि यदि नहीं तो इसके क्या कारण हैं?
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सरकार को लोगों की मौत के लिए ठहराया जिम्मेदार
बिश्वास ने सरकार से यह भी पूछा था कि क्या सरकार यह मानती है कि नोटबंदी का उसका अनियोजित निर्णय निर्दोष लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार था? वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने इन सवालों के लिखित जवाब में कहा, ऐसी कोई सरकारी रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है।
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कितने लोगों की मौत की गई स्वीकार
हालांकि, 18 दिसंबर 2018 को तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसी उच्च सदन में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य एलामाराम करीम द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में स्वीकार किया था कि नोटबंदी की अवधि के दौरान चार लोगों की मौत हुई थी।
करीम ने अपने प्रश्न में क्या पूछा जानें
करीम ने सरकार से सवाल किया था कि विमुद्रीकरण के दौरान नोट बदलने के लिए लाइन में खड़े होने, मानसिक सदमे, काम के दबाव आदि के कारण बैंक कर्मियों सहित कितने व्यक्तियों की मौत हुई और क्या उनके परिवार को कोई मुआवजा दिया गया। इस सवाल के जवाब में तत्कालीन वित्त मंत्री जेटली ने कहा था, भारतीय स्टेट बैंक को छोड़कर सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने शून्य सूचना दी है। भारतीय स्टेट बैंक ने सूचित किया है कि विमुद्रीकरण की अवधि के दौरान 3 स्टाफ सदस्यों और एक ग्राहक की मृत्यु हुई। मृतकों के परिवार के सदस्यों को 44,06,869 रुपये का मुआवजा दिया गया। इसमें ग्राहक के परिवार को दिए गए तीन लाख रुपये भी शामिल हैं।
नोटबंदी के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में दी गई थी चुनौती
ज्ञात हो कि आठ नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए 500 रुपये और 1000 रुपये के उच्च मूल्य वाले नोटों को चलन से बाहर किए जाने की घोषणा की थी। बाद में केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। इसी साल जनवरी महीने में शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि केंद्र सरकार के 2016 में 500 और 1000 रुपये की श्रृंखला वाले नोट बंद करने के फैसले को अनुचित नहीं ठहराया जा सकता।
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