मैरिटल रेप यानी वैवाहिक दुष्कर्म के मामले मे दिल्ली हाई कोर्ट के जज के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। दरअसल, हाईकोर्ट के दो जजों की बेंच ने बीते सप्ताह 11 मई को मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से संबंधित एक मुद्दे पर विभाजित फैसला सुनाया है।
11 मई को सुनवाई के दौरान जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी. हरिशंकर की राय एक मत नहीं दिखी। दोनों जजों ने मैरिटल रेप के अपराधीकरण को लेकर खंडित फैसला सुनाया था। जस्टिस राजीव शकधर ने अपने फैसले में मैरिटल रेप को जहां अपराध माना, वहीं जस्टिस सी. हरिशंकर ने इसे अपराध नहीं माना।
क्या दिए तर्क?
जस्टिस शकधर ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि जहां तक मेरी बात है, तो विवादित प्रावधान-धारा 375 का अपवाद दो- संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), 15 (धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध), 19 (1) (ए) (वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन हैं और इसलिए इन्हें समाप्त किया जाता है। जस्टिस शकधर ने कहा था कि उनकी घोषणा निर्णय सुनाए जाने की तारीख से प्रभावी होगी।
वहीं, जस्टिस हरिशंकर ने कहा था कि मैं अपने विद्वान भाई से सहमत नहीं हो पा रहा हूं। उन्होंने कहा कि ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और 21 का उल्लंघन नहीं करते। उन्होंने कहा कि अदालतें लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित विधायिका के दृष्टिकोण के स्थान पर अपने व्यक्तिपरक निर्णय को प्रतिस्थापित नहीं कर सकतीं और यह अपवाद आसानी से समझ में आने वाले संबंधित अंतर पर आधारित है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा इन प्रावधानों को दी गई चुनौती को बरकरार नहीं रखा जा सकता।
मैरिटल रेप पर केंद्र का रूख?
दरअसल, केंद्र सरकार ने साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने हलफनामे में कहा था कि वैवाहिक बलात्कार यानी मैरिटल रेप को आपराधिक श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि यह एक ऐसी घटना बन सकती है जो विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकती है और पतियों को परेशान करने का आसान साधन बन सकती है। हालांकि, इस साल जनवरी में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह मैरिटल रेप से संबंधित याचिकाओं के मामले में अपने पहले के रुख पर फिर से विचार कर रहा है।