Cheetah In India : जानिए ! इंडिया से कैसे खत्म हो गए थे चीते , कब शुरू हुई चीतों को भारत लाने की कहानी ? - Punjab Kesari
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Cheetah in India : जानिए ! इंडिया से कैसे खत्म हो गए थे चीते , कब शुरू हुई चीतों को भारत लाने की कहानी ?

भारत में विलुप्त होने के सात दशक बाद आठ चीते शनिवार सुबह एक विशेष विमान से नामीबिया से

भारत में विलुप्त होने के सात दशक बाद आठ चीते शनिवार सुबह एक विशेष विमान से नामीबिया से देश पहुंचे और उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ दिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि चीते पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण की दिशा में उनकी सरकार के प्रयासों के तहत लाए गए हैं।
उन्होंने पूर्ववर्ती सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि सात दशक पहले विलुप्त होने के बाद देश में चीतों के पुनर्वास के लिए दशकों से कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए।
नामीबिया से आठ चीतों की 8,000 किलोमीटर से अधिक की अंतरमहाद्वीपीय यात्रा
नामीबिया से आठ चीतों की 8,000 किलोमीटर से अधिक की अंतरमहाद्वीपीय यात्रा शुक्रवार रात शुरू हुई। इन आठ चीतों में से पांच मादाएं और तीन नर हैं, जिनकी उम्र 30 से 66 महीने की बीच है।
देश में फिर से चीतों को बसाने की परियोजना के तहत नामीबिया से यहां आठ चीतों को लकड़ी के पिंजरों में अर्द्ध बेहोश (ट्रैंक्युलाइज) कर शनिवार को लाया गया था और इनमें से तीन चीतों को प्रधानमंत्री मोदी ने भारत में अपने नए बसेरे कूनो राष्ट्रीय उद्यान के विशेष बाड़ों में पूर्वाह्न सुबह करीब 11.30 बजे छोड़ा, जबकि बाकी पांच को अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने छोड़ा।
PM मोदी एवं चौहान ने ताली बजाकर इन चीतों का भारत की भूमि पर किया स्वागत 
इनको पिंजरों से विशेष बाड़े में छोड़ने के लिए करीब 10 फीट ऊंचा एक प्लेटफॉर्मनुमा मंच बनाया गया था, जहां से मोदी ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में इन्हें लीवर घुमाकर पिंजरे से निकाला, जो मंच के ठीक नीचे रखे गये थे।
जैसे-जैसे मोदी लीवर घुमा रहे थे, पिंजरे का दरवाजा धीरे-धीरे खुलता जा रहा था। पहले पिंजरे का दरवाजा खुलने पर इसमें बैठा चीता कुछ देर तक अंदर ही रहा। इसके तुरंत बाद दूसरे पिंजरे का दरवाजा भी इसी लीवर को घुमाकर खोला गया और इसमें रखे हुए चीते ने अपने नये परिवेश को निहारते हुए धीरे-धीरे कूनो राष्ट्रीय उद्यान में बने अपने विशेष बाड़े में कदम रख दिया।
इसके कुछ देर बाद, पहला चीता भी उसी विशेष बाड़े में आ गया, जिसके पिंजरे का दरवाजा सबसे पहले खुला था ।
इसके बाद दोनों चीते वहां विचरण करने लगे और इनमें से एक चीता दौड़ते हुए एक पेड़ के पास जाकर खड़ा हो गया। मोदी एवं चौहान उन्हें निहारते रहे। उन्होंने ताली बजाकर इन चीतों का भारत की भूमि पर स्वागत किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस एतिहासिक पलों को अपने कैमरे में कैद भी किया।
इसके बाद मोदी ने तीसरे चीते को इस उद्यान के दूसरे विशेष बाड़े में, जबकि बाकी पांच चीतों को अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने अन्य विशेष बाड़ों में छोड़ा।
प्रधानमंत्री मोदी ने तीन चीते छोड़े, जबकि शेष पांच चीतों को अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने छोड़ा
कूनो राष्ट्रीय उद्यान के संभागीय वन अधिकारी पी के वर्मा ने बताया, ‘‘प्रधानमंत्री मोदी ने तीन चीते छोड़े, जबकि शेष पांच चीतों को अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने छोड़ा। विशेष बाड़े को छह हिस्सों में विभाजित किया गया है। दो हिस्सों में दो-दो चीते रखे गये हैं, जबकि अन्य चार में एक-एक चीता रहेगा।’’
आजादी के पांच साल बाद 1952 में देश में चीतों के विलुप्त होने का एलान किया गया
इन चीतों को कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ने के लिए आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, ‘‘ये दुर्भाग्य रहा कि हमने 1952 में चीतों को देश से विलुप्त तो घोषित कर दिया, लेकिन उनके पुनर्वास के लिए दशकों तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ। आज आजादी के अमृतकाल में अब देश नई ऊर्जा के साथ चीतों के पुनर्वास के लिए जुट गया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं हमारे मित्र देश नामीबिया और वहां की सरकार का भी धन्यवाद करता हूं जिनके सहयोग से दशकों बाद चीते भारत की धरती पर वापस लौटे हैं।’’
1947 में जंगल में बचे थे तीन चीते 
उन्होंने कहा कि भारत में 1947 में तीन चीते जंगल में बचे थे, जिनका दुर्भाग्य से शिकार किया गया था।
मोदी ने कहा कि मानवता के सामने ऐसे अवसर बहुम कम आते हैं जब समय का चक्र हमें अतीत को सुधार कर नये भविष्य के निर्माण का मौका देते हैं, आज सौभाग्य से हमारे सामने एक ऐसा ही क्षण है।
उन्होंने कहा,‘‘ दशकों पहले, जैव-विविधता की सदियों पुरानी जो कड़ी टूट गई थी, विलुप्त हो गई थी, आज हमें उसे फिर से जोड़ने का मौका मिला है। आज भारत की धरती पर चीते लौट आए हैं और मैं ये भी कहूंगा कि इन चीतों के साथ ही भारत की प्रकृति प्रेमी चेतना भी पूरी शक्ति से जागृत हो उठी है।’’
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ये बात सही है कि जब प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण होता है तो हमारा भविष्य भी सुरक्षित होता है, विकास और समृद्धि के रास्ते भी खुलते हैं।उन्होंने कहा कि कुनो राष्ट्रीय उद्यान में जब चीते फिर से दौड़ेंगे, तो यहां के घास के मैदान की पारिस्थितिकी सृदृढ़ होगी और जैव विविधता और बढ़ेगी।
उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय दिशानिर्देशों पर चलते हुए भारत इन चीतों को बसाने की पूरी कोशिश कर रहा है, हमें अपने प्रयासों को विफल नहीं होने देना है।
चीतों को देखने के लिए देशवासियों को कुछ महीने का धैर्य दिखाना होगा – PM मोदी
मोदी ने कहा कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़े गए चीतों को देखने के लिए देशवासियों को कुछ महीने का धैर्य दिखाना होगा, इंतजार करना होगा। उन्होंने कहा कि आज ये चीते मेहमान बनकर आए हैं, इस क्षेत्र से अनजान हैं। कुनो राष्ट्रीय उद्यान को ये चीते अपना घर बना पाएं, इसके लिए हमें इन चीतों को भी कुछ महीने का समय देना होगा।
उन्होंने कहा कि प्रकृति और पर्यावरण, पशु और पक्षी, भारत के लिए ये केवल निरंतरता (सस्टेनेबिलिटी) और सुरक्षा के विषय नहीं हैं बल्कि हमारे लिए ये हमारी संवेदनशीलता और आध्यात्मिकता का भी आधार हैं।
मोदी ने कहा कि आज 21वीं सदी का भारत, पूरी दुनिया को संदेश दे रहा है कि अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी कोई विरोधाभाषी क्षेत्र नहीं है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण की रक्षा के साथ ही, देश की प्रगति भी हो सकती है, ये भारत ने दुनिया को करके दिखाया है।
उन्होंने कहा कि बाघों की संख्या को दोगुना करने का जो लक्ष्य तय किया गया था, उसे समय से पहले हासिल किया है, असम में एक समय एक सींग वाले गैंडों का अस्तित्व खतरे में पड़ने लगा था, लेकिन आज उनकी भी संख्या में वृद्धि हुई है।
उन्होंने कहा कि हाथियों की संख्या भी पिछले वर्षों में बढ़कर 30,000 से ज्यादा हो गई है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा,‘‘ हमारे यहां एशियाई शेरों की संख्या में भी बड़ा इजाफा हुआ है और आज गुजरात, देश में एशियाई शेरों का बड़ा क्षेत्र बनकर उभरा है।’’ उन्होंने कहा कि इसके पीछे दशकों की मेहनत, अनुसंधान आधारित नीतियां और जन-भागीदारी की बड़ी भूमिका है।
 नामीबिया से लाये गये चीतों में से दो भाई हैं
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि नामीबिया से लाये गये चीतों में से दो भाई हैं।
उन्होंने कहा कि मुक्त होते ही चीते सुरक्षा के लिहाज से तैयार किये गये विशेष बाड़ों में विचरण करने लगे।
सूत्रों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय दिशानिर्देशों के अनुसार पृथक-वास अवधि खत्म होने के बाद उन्हें जंगल में स्वच्छंद विचरण के लिये आजाद किया जायेगा।
मालवाहक बोइंग विमान ने शुक्रवार रात को नामीबिया से उड़ान भरी थी और लगभग 10 घंटे की लगातार यात्रा के दौरान चीतों को लकड़ी के बने विशेष पिंजरों में पहले ग्वालियर और फिर यहां लाया गया।
कब शुरू हुई चीतों को भारत लाने की कहानी 
आजादी के पांच साल बाद 1952 में देश में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया गया था। साथ ही सरकार ने चीतों के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास करने की घोषणा की। 1970 के दशक में, एशियाई शेरों के बदले में ईरान से एशियाई चीतों को भारत लाने के लिए बातचीत शुरू हुई। ईरान में चीतों की छोटी आबादी और अफ्रीकी चीतों और ईरानी चीतों के बीच समानता को देखते हुए, यह निर्णय लिया गया कि अफ्रीकी चीतों को भारत लाया जाएगा।
चीतों को देश में लाने के प्रयास 2009 में नए सिरे से शुरू हुए। इसके लिए ‘अफ्रीकी चीता इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट इन इंडिया’ प्रोजेक्ट शुरू किया गया। 2010 से 2012 के दौरान देश के दस वन्य अभ्यारण्यों का सर्वेक्षण किया गया। इसके बाद मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान को चीतों के लिए चुना गया।

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