देश के नए CJI बने यू.यू. ललित, भारत के 49वें प्रधान न्यायाधीश पद की ली शपथ - Punjab Kesari
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देश के नए CJI बने यू.यू. ललित, भारत के 49वें प्रधान न्यायाधीश पद की ली शपथ

केंद्र सरकार ने पूर्व सीजेआई रमना की सिफारिश के बाद न्यायमूर्ति ललित को शीर्ष पद पर नियुक्त करने

न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित (Justice Uday Umesh Lalit) ने आज सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के प्रधान न्यायाधीश (Chief Justice) के रूप में शपथ ले ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) ने न्यायमूर्ति यू.यू. ललित को भारत के 49वें सीजेआई (CJI) के रूप में पद की शपथ दिलाई। 
शपथ ग्रहण समारोह राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया गया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़, एस. अब्दुल नजीर, एम.आर. शाह, दिनेश माहेश्वरी, साथ ही सुप्रीम कोर्ट के अन्य न्यायाधीश और गणमान्य व्यक्ति शामिल रहे। 
इस महीने की शुरुआत में केंद्र सरकार ने पूर्व सीजेआई रमना की सिफारिश के बाद न्यायमूर्ति ललित को शीर्ष पद पर नियुक्त करने की अधिसूचना जारी की थी, जिन्होंने 26 अगस्त को पद छोड़ दिया था। 13 अगस्त 2014 को न्यायमूर्ति ललित को बार से सीधे सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया था। 

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इनसे पहले दिवंगत न्यायमूर्ति एस.एम. सीकरी को बार से सीधे सुप्रीम कोर्ट में जज के रूप में नियुक्त किया गया था। हालांकि, यू.यू. ललित का प्रधान न्यायाधीश के रूप में एक छोटा कार्यकाल होगा, क्योंकि वह 8 नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे। न्यायमूर्ति ललित को अप्रैल 2004 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था। उन्हें 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के सभी मामलों में सीबीआई के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किया गया था। 
उन्होंने 1986 और 1992 के बीच दिवंगत अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी के साथ भी काम किया। जुलाई में एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस ललित ने टिप्पणी की थी कि अगर बच्चे रोज सुबह 7 बजे स्कूल जा सकते हैं, तो जज और वकील सुबह 9 बजे कोर्ट क्यों नहीं आ सकते। “मैंने हमेशा कहा है कि अगर हमारे बच्चे सुबह 7 बजे स्कूल जा सकते हैं, तो हम 9 बजे कोर्ट क्यों नहीं आ सकते?”
न्यायमूर्ति ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या को अदालत की अवमानना के मामले में चार महीने के कारावास और 2,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। वह उस पांच-जजों की बेंच का हिस्सा थे, जिसने तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक घोषित किया था। 

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