दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को निर्देश दिया कि कथित गैरकानूनी गतिविधियों के लिये महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तार नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को राष्ट्रीय राजधानी से तब तक बाहर नहीं ले जाया जाए, जब तक कि वह बुधवार सुबह मामले पर सुनवाई नहीं कर लेती, क्योंकि उनके खिलाफ लगाए गए कुछ आरोप स्पष्ट नहीं हैं।
न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने कहा कि दस्तावेजों से यह पता नहीं चलता है कि नवलखा के खिलाफ क्या मामला है। माओवादियों से संबंध के संदेह में कई शहरों में की गई छापेमारी के बाद महाराष्ट्र पुलिस ने गौतम नवलखा और कुछ अन्य लोगों को गिरफ्तार किया है।
अदालत ने यह सवाल भी किया कि क्यों गौतम नवलखा की गिरफ्तारी को प्रमाणित करने के लिये गवाहों को पुणे से लाया गया। अदालत ने इस बात की ओर इशारा करते हुए कहा कि कानून के तहत जिस इलाके से किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, गवाह उस क्षेत्र का स्थानीय व्यक्ति होना चाहिये। पीठ ने कहा ‘‘उनके खिलाफ क्या विशेष आरोप हैं।’’
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इस पर अदालत में मौजूद महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारियों ने कोई जवाब नहीं दिया। पीठ ने यह भी कहा कि उसे शाम चार बजे सूचित किया गया कि साकेत की एक जिला अदालत ने याचिकाकर्ता को पुणे ले जाने के लिये ट्रांजिट रिमांड आदेश दिया है। पीठ ने कहा, ‘‘चूंकि ट्रांजिट रिमांड आवेदन (और अन्य दस्तावेजों) से यह पता नहीं चल रहा है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ क्या मामला है, इसलिये उसे दिल्ली से बाहर नहीं ले जाया जाएगा।’’
अदालत ने कहा कि वह बुधवार सुबह सबसे पहले इस मामले पर सुनवाई करेगी। तब तक गौतम नवलखा अपने आवास पर दिल्ली पुलिस के अधिकारियों की निगरानी में रहेंगे और उन्हें सिर्फ अपने वकीलों से मिलने या बातचीत करने की अनुमति होगी। पीठ ने प्राथमिकी और अन्य दस्तावेजों की अनूदित प्रतियां भी आज उसके समक्ष रखने को कहा। ये दस्तावेज मराठी में हैं।
महाराष्ट्र पुलिस गौतम नवलखा को पिछले साल 31 दिसंबर को आयोजित ‘एल्गार परिषद’ कार्यक्रम के बाद दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में पुणे ले जाना चाहती थी। इस कार्यक्रम के बाद राज्य में कोरेगांव-भीमा गांव में हिंसा हुई थी। आपको बता दें कि गौतम नवलखा के खिलाफ समुदायों के बीच शत्रुता फैलाने और गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत आतंकवादी कृत्य, साजिश और आतंकवादी समूह का हिस्सा होने के आरोप लगाए गए हैं।
दिल्ली पुलिस के वकील राहुल मेहरा ने अदालत से कहा कि जांच के दौरान यूएपीए के आरोप लगाए गए हैं। संक्षिप्त सुनवाई के दौरान नागरिक अधिकार कार्यकर्ता की ओर से उपस्थित अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने कहा कि वह उस कार्यक्रम में मौजूद नहीं थे और उनके आवास की तलाशी में कुछ भी आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिली है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि तलाशी और गिरफ्तारी के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया क्योंकि वारंट मराठी में था, जिसे गौतम नवलखा समझ नहीं सके। साथ ही कार्रवाई के आधार भी लिखित में नहीं दिये गए। उच्च न्यायालय गौतम नवलखा की तरफ से अधिवक्ता वारिशा फरासत द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
बता दें कि महाराष्ट्र पुलिस ने मंगलवार दोपहर दिल्ली में गौतम नवलखा को उनके आवास से उठा लिया। उन्हें कोरेगांव-भीमा गांव में पिछले साल 31 दिसंबर को हुई हिंसा के सिलसिले में पुलिस ने उठाया। वामपंथी कार्यकर्ता वरवर राव और सुधा भारद्वाज को भी महाराष्ट्र पुलिस ने कल गिरफ्तार किया।
महाराष्ट्र पुलिस ने माओवादियों के संदिग्ध समर्थकों के दिल्ली समेत कई राज्यों में ठिकानों पर छापेमारी की। यह छापेमारी महाराष्ट्र के कोरगांव-भीमा गांव में हुई हिंसा की जांच के सिलसिले में की गई। यह घटना पुणे में पिछले साल 31 दिसंबर को ‘एल्गार परिषद’ कार्यक्रम का आयोजन किये जाने के बाद हुई थी।