फारुक टकला ने 2011 में फर्जी पहचान से भारतीय पासपोर्ट हासिल किया था : CBI - Punjab Kesari
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फारुक टकला ने 2011 में फर्जी पहचान से भारतीय पासपोर्ट हासिल किया था : CBI

पुलिस ने चार नवंबर, 1993 को एक आरोपपत्र दायर किया था जिसमें उसने फारुक टकला को मामले में

सीबीआई का कहना है कि सन् 1993 के मुम्बई बम धमाकों का कथित ‘‘सक्रिय साजिशकर्ता’’ और दाऊद इब्राहिम का करीबी फारुक टकला 2011 में मुश्ताक मोहम्मद मियां नाम से भारतीय पासपोर्ट हासिल करने में कामयाब रहा था। सीबीआई ने पिछले हफ्ते एक टाडा अदालत में दायर अपने आरोपपत्र में दावा किया कि जब टकला को आठ मार्च, 2018 को दुबई से यहा लाया गया और उसे इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया तब उसके पास से दुबई के भारतीय वाणिज्य दूतावास से जारी यह पासपोर्ट मिला। एजेंसी ने आरोप लगाया है कि मोहम्मद फारुक यासीन मंसूर उर्फ फारुक टकला मार्च, 1993 के बम धमाकों के बाद दुबई भाग गया था और वह मुश्ताक मोहम्मद मियां की फर्जी पहचान के साथ रह रहा था। इन धमाकों में 257 लोग मारे गये थे।

सीबीआई ने कहा कि टकला के पास से जो पासपोर्ट मिला है उसे आठ फरवरी, 2011 को दुबई के भारतीय वाणिज्य दूतावास ने जारी किया था। इस केंद्रीय जांच एजेंसी ने 19 नवंबर,1993 को इन बम धमाकों की जांच बंबई (अब मुम्बई) पुलिस से अपने हाथों में ली थी। पुलिस ने चार नवंबर, 1993 को एक आरोपपत्र दायर किया था जिसमें उसने फारुक टकला को मामले में वांछित 44 भगोड़े में से एक बताया था। अधिकारियों के अनुसार मुम्बई धमाकों की जांच अपने हाथ में लेने के बाद सीबीआई ने 1995 में टकला के खिलाफ रेडकार्नर नोटिस जारी करवाया। जब उसे पता चला कि टकला मुश्ताक मोहम्मद मियां की फर्जी पहचान से दुबई में रह रहा है तो उसने पिछले ही साल अगस्त में उसके विरुद्ध नया गैर जमानती वारंट जारी करवाया।

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आरोप है कि फारुक टकला दाऊद इब्राहिम और अनीस इब्राहिम का करीबी है तथा 1993 के मुम्बई धमाकों के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक था। सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में आरोप लगाया है कि तब शेख बुरहान कमरुद्दीन मार्ग के निवासी टकला ने उन पांच आरोपियों के लिए विमान टिकट, रहने आदि की व्यवस्था करवायी जो हथियारों एवं विस्फोटकों का प्रशिक्षण लेने दुबई के रास्ते पाकिस्तान गये थे। इन्हीं विस्फोटकों का मुम्बई धमाकों में इस्तेमाल किया गया। सीबीआई ने टकला पर आतंकवादी एवं विध्वंसकारी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम और भादसं की संबंधित धाराएं लगायी हैं। आतंकवादी एवं विध्वंसकारी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत उसे अधिकतम उम्रकैद हो सकती है। भादसं की संबंधित धारा के तहत अधिकतम मृत्युदंड का प्रावधान है।

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