भारत की सांस्कृतिक पहचान को मुख्यधारा में लाने का प्रयास हाल के दिनों में तेज हो गया है : राम माधव - Punjab Kesari
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भारत की सांस्कृतिक पहचान को मुख्यधारा में लाने का प्रयास हाल के दिनों में तेज हो गया है : राम माधव

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य राम माधव ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत की

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य राम माधव ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत की सांस्कृतिक पहचान को मुख्यधारा में लाने का प्रयास हाल के दिनों में इतना गहन और तेज हो गया है कि तथाकथित उदारवादी भी सार्वजनिक रूप से इसे स्वीकार कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि हालांकि इसके बिल्कुल विपरीत एक खतरनाक ट्रेंड भी चल रहा है, जिसे देश की राजनीति में घोला जा रहा है।
कुछ तत्व भारत की पहचान खारिज करने की कोशिश कर रहे हैंं
संसद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के भाषण और राष्ट्रवाद पर पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के विचारों पर भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव ने कहा कि एक ओर जहां भारतीय अपने सांस्कृतिक मूल्यों के साथ अपनी पहचान जोड़ कर खुश हैं, वहीं कुछ वैकल्पिक तत्व हैं जो इसे खारिज करने का प्रयास कर रहे हैं।
द हिन्दुत्व पैराडाइम किताब पर चल रही थी चर्चा 
अपनी पुस्तक ‘द हिन्दुत्व पैराडाइम – इंटेग्रल ह्यूमैनिज्म एंड द क्वेस्ट फॉर ए नॉन-वेस्टर्न वर्ल्डव्यू’ पर चर्चा के दौरान राम माधव ने कहा, ‘‘ऐसे वक्त में जब महान राष्ट्र जाग रहा है और लोगों में हमारी संस्कृति और सभ्यता को लेकर गौरव की भावना विकसित हो रही है, हम विभाजन देख रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि अंसारी ने यह कहकर कि ‘भारत के पास सांस्कृतिक राष्ट्रवाद नहीं होना चाहिए बल्कि उसे सभ्य राष्ट्रवाद का पालन करना चाहिए,’ गणतंत्र दिवस पर देश की राष्ट्रवादी पहचान पर सवाल उठाया है।
जब भारत राष्ट्र नही तो उनके बाप दादा किस चीज के लिए लड़ रहे थे – राम माधव
माधव ने कहा, ‘‘सभ्य राष्ट्रवाद के इस विचार को अब राहुल गांधी आगे बढ़ा रहे हैं, उन्होंने संसद में खुले तौर पर कहा कि ‘हम राष्ट्र नहीं हैं, बल्कि राज्यों का संघ हैं’। अगर हम राष्ट्र नहीं है, फिर उनके दादा-परदादा ब्रिटिश शासन के खिलाफ किस चीज के लिए लड़ रहे थे।’’
आरएसएस नेता ने सवाल किया, ‘‘फिर उस वक्त, भारत की आजादी पर (जवाहर लाल) नेहरू अपने ‘नियति से साक्षात्कार’ भाषण में क्या बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत में सभ्य राष्ट्रवाद की कोई प्रासंगिकता नहीं है क्योंकि यहां कोई शरणार्थी/आव्रजक नहीं हैं।
 

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