कांग्रेस का आरोप - नये वन संरक्षण नियम जनजातियों को शक्तिविहीन बना देंगे - Punjab Kesari
Girl in a jacket

कांग्रेस का आरोप – नये वन संरक्षण नियम जनजातियों को शक्तिविहीन बना देंगे

कांग्रेस ने रविवार को आरोप लगाया कि केंद्र की मोदी सरकार जनजातियों के अधिकारों की रक्षा करने की

कांग्रेस ने रविवार को आरोप लगाया कि केंद्र की मोदी सरकार जनजातियों के अधिकारों की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रही है। पार्टी ने साथ ही कहा कि नये वन संरक्षण नियम करोड़ों ‘‘जनजातियों’’ और वन क्षेत्र में रह रहे लोगों को शक्तिविहीन बना देंगे।
हालांकि, पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि नये नियम वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को ‘‘न तो कमजोर और न ही उनमें हस्तक्षेप करते हैं।’’ उन्होंने कहा कि (प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी सरकार जनजातियों के अधिकारों को संरक्षित करने को लेकर प्रतिबद्ध है।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भाजपा नीत सरकार पर ‘‘वन भूमि को छीनने की प्रक्रिया आसान बनाने के लिए’’ वन रक्षा नियमों को कमजोर करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ‘‘ मजबूती से जजातीय समुदाय के भाइयों और बहनों’’के साथ खड़ी है।
राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘‘ ‘मोदी-मित्र’ सरकार अपनी मित्रता में बेहतरीन! जंगल की जमीन ‘ छीनने में सुगमता’ के लिए भाजपा सरकार नये वन संरक्षण नियम-2022 के साथ आई और सप्रंग राज के वन अधिकार नियम-2006 को कमजोर कर रही है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस मजबूती के साथ हमारे आदिवासी भाइयों और बहनों की ‘जल-जंगल और जमीन’ बचाने की लड़ाई में खड़ी है।’’
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि हाल में जारी नये नियम केंद्र सरकार द्वारा अंतिम रूप से वन मंजूरी देने के बाद ही वन अधिकार के मुद्दे को निपटाने की अनुमति देते हैं।
उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘निश्चित तौर पर यह कुछ चुने गए लोगों के लिए ‘‘व्यापार सुगमता’’के नाम पर किया गया। लेकिन यह बड़ी आबादी की ‘‘ जीविकोपार्जन सुगमता’’ समाप्त करेगा।’’
पूर्व पर्यावरण मंत्री ने कहा कि इसने वन भूमि को किसी अन्य उपयोग के लिए इस्तेमाल के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए वन अधिकार अधिनियम-2006 के उद्देश्य और अर्थ को ही खंडित कर दिया है।
रमेश ने कहा, ‘‘एक बार वन मंजूरी दे देने के बाद बाकी सभी चीजें महज औपचारिकता रह जाएंगी और यह लगभग तय है कि किसी भी दावे को स्वीकार नहीं किया जाएगा व उनका समाधान नहीं होगा। इसके तहत राज्य सरकारों पर केंद्र की ओर से वन भूमि को अन्य उपयोग के लिए बदलने की प्रक्रिया को तेज करने के लिए अधिक दबाव बनाया जाएगा।’’
रमेश ने कहा कि ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006,’ जिसे वन अधिकार अधिनियम, 2006 के रूप में जाना जाता है, एक ऐतिहासिक और प्रगतिशील कानून है जिसे संसद द्वारा व्यापक बहस और चर्चा के बाद सर्वसम्मति से और उत्साहपूर्वक पारित किया गया है। और यह देश के वन क्षेत्रों में रहने वाले जनजातीय, दलित और अन्य परिवारों को, व्यक्तिगत और समुदाय दोनों को भूमि और आजीविका के अधिकार प्रदान करता है।
अगस्त 2009 में, इस कानून के पूर्ण कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए, तत्कालीन पर्यावरण और वन मंत्रालय ने निर्धारित किया कि वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत वन भूमि के अन्य किसी इस्तेमाल के लिए किसी भी मंजूरी पर तब तक विचार नहीं किया जाएगा जब तक कि वन अधिकार अधिनियम, 2006 के पहले उनका निपटारा नहीं कर दिया जाता।
उन्होंने कहा, ‘‘यह पारंपरिक रूप से वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी और अन्य समुदायों के हितों की रक्षा और बढ़ावा देने के लिए किया गया था।’’
उन्होंने दावा किया, ‘‘अब, हाल ही में जारी नये नियमों में, मोदी सरकार ने केंद्र सरकार द्वारा वन मंजूरी के लिए अंतिम मंजूरी मिलने के बाद वन अधिकारों के निपटान की अनुमति दी है।’’
कांग्रेस के आरोपों का जवाब देने के लिए यादव ने ट्विटर का सहारा लिया। उन्होंने कहा कि वन(संरक्षण) नियम-2022 सुधारात्मक हैं, जिसका उद्देश्य अधिनियम के तहत मंजूरी की प्रक्रिया को सुचारु बनाना है और वन अधिकार अधिनियम-2006 सहित कानूनों और नियमों के तहत समानांतर प्रक्रिया को सक्षम बनाना है।
यादव ने कहा, ‘‘आरोप, यह दुष्प्रचार करने की कोशिश है कि नियम कानून के अन्य प्रावधानों पर ध्यान नहीं देते।’’
उन्होंने कहा,‘‘श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में सरकार जनजातियों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है।’’
जयराम रमेश के आरोपों का जवाब देते हुए मंत्री ने कहा कि ‘‘ जयराम जी आप उस समस्या की ओर संकेत करने की कोशिश कर रहे हैं, जो मौजूद ही नहीं है। वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को कमजोर नहीं किया गया है, जैसा कि गलत तरीके से व्याख्या की जा रही है क्योंकि वन अधिकार अधिनिय-2006 को पूरा करने और प्रतिबद्धता का विशेष तौर पर उल्लेख नियमों में किया गया है, इससे पहले की राज्य भूमि उपयोग के बदलाव का आदेश जारी करता।’’
हालांकि, रमेश ने पलटवार करते हुए कहा, ‘‘ मंत्री जी, कृपया कर मुख्य मुद्दे से नहीं बचे। मुद्दा यह है कि क्या आप ग्राम सभा को अप्रासंगिक नहीं बना रहें? आपको संभवत: सही तरीके से जानकारी नहीं दी गई है। आपके नये नियम मोदी सरकार के जनजातीय मंत्रालय के 2015 के नोट के खिलाफ जाते हैं।’’
कांग्रेस ने कहा कि नये नियमों की घोषणा संसद की विज्ञान, प्रौद्योगिक, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन पर स्थायी समितियों सहित हितधारकों से चर्चा किए बना कर दी गई और संसद के आगामी सत्र में इसको चुनौती दी जाएगी।
रमेश ने हैशटैग आदिवासीविरोधीनरेंद्रमोदी के साथ ट्वीट किया, ‘‘अगर मोदी सरकार द्वारा जनजातियों के हितों की रक्षा करने और उन्हें प्रोत्साहित करने की वास्तविक मंशा दिखाई गई है तो यह फैसला है, जो करोड़ों जनजातियों और वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों को शक्तिविहीन बनाएगा।’’
उन्होंने एक समाचार रिपोर्ट साझा करते हुए कहा कि सरकार जनजातियों और वनवासियों की सहमति के बिना जंगलों को काटने की मंजूरी दे रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।