कांग्रेस ने शुक्रवार को कहा कि लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रावधान वाले विधेयक पर केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। मुख्य विपक्षी दल ने सरकार से यह आग्रह भी किया कि 13 मार्च से आरंभ हो रहे, संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण के दौरान ही इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया जाए ताकि महिलाओं को उनका अधिकार मिल सके।
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘‘ कांग्रेस नेतृत्व के प्रयासों के कारण 9 मार्च 2010 को ऐतिहासिक महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा में पारित हुआ था। लेकिन लोकसभा में इसे समर्थन नहीं मिल सका। विधेयक की मियाद अभी भी खत्म नहीं हुई है, यह लोकसभा में लंबित है। इसे फिर से पेश करने से किसने रोका है?’’
भाजपा सरकार अपनी स्थिति स्पष्ट करे
कांग्रेस नेता अलका लांबा ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘केंद्र में कांग्रेस की सरकार के समय 2010 में महिला आरक्षण विधेयक पारित किया गया था, लेकिन लोकसभा में इसे पारित नहीं किया जा सका क्योंकि इस सदन में कांग्रेस का बहुमत नहीं था। विधेयक आज भी मौजूद है।’’
उनका कहना था कि भाजपा ने अपने घोषणापत्र में महिला आरक्षण का वादा किया था, लेकिन पिछले नौ वर्षों से वह इस संबंध में पूरी तरह खामोश है। उन्होंने कहा, ‘‘हम मांग करते हैं कि केंद्र की भाजपा सरकार अपनी स्थिति स्पष्ट करे, विधेयक को लोकसभा में पेश करे, चर्चा करे और महिलाओं का अधिकार उन्हें दे। ’’ कांग्रेस ने यह बयान उस वक्त दिया है जब भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की नेता के. कविता ने महिला आरक्षण विधेयक को जल्द पारित करने की मांग को लेकर शुक्रवार को यहां छह घंटे की भूख हड़ताल की।
लोकसभा की मंजूरी के लिए भेजा गया
महिला आरक्षण विधेयक में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया गया है। 12 सितंबर 1996 को सबसे पहले संयुक्त मोर्चा सरकार ने इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया था। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने भी इस विधेयक को लोकसभा के पटल पर रखा था, लेकिन यह तब भी पारित नहीं हो सका था।
कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के समय 2010 में राज्यसभा ने महिला आरक्षण विधेयक पर मुहर लगाई थी, जिसके बाद इसे लोकसभा की मंजूरी के लिए भेजा गया। इसके बाद से विधेयक ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है।